देश में नई सरकार लगभग गठित हो चुकी है और समाज के हर एक वर्ग के लिए इसके मायने अलग अलग हैं। भारतीय सेना के एक अफसर की पत्नी होने के नाते मैं थोडी शंकित हूँ ..शंकित हूँ इस बात को ले कर की अगले पाँच वर्षों मैं सशत्र सेनाओं को कितनी अहमियत दी जायेगी। क्या एक बार फिर अपने जायज़ हक की लडाई में हम पर बागी होने का इल्जाम लगाया जाएगा और हमारे हक हमें अहसान की तरह दिए जायेंगे।
सेना कामो बेश हमेशा से कांग्रेस के महत्वपूर्ण मुद्दों से बाहर रही है। ६० के दशक में नेहरू ने सोचा था की पंचशील नीति देश की सुरक्षा के लिए काफ़ी है और सेना पर अधिक व्यय करने की कोई आवश्यकता नहीं ..यह भ्रम चीन के साथ युद्घ के बाद टुटा ,वही चीन जिस के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे । दुःख की बात है प्रजातंत्र की सफलता की बात करते हुए बुधीजीवी राजनीती के बात करते हैं, भारतीय प्रशासनिक सेवा की बात करते और उन्हें इस सफलता के श्रेय भी देते हैं पर इस सफलता में कभी सेना को भागीदार नहीं बनाया जाता है । जब कभी सेना अपने महत्व को याद दिलाने का प्रयास करती है तो उन्हें याद दिलाया जाता है की उनका काम आदेश सुनना है ,प्रशन करना नहीं...
मेरा सवाल छोटा सा है की यदि देश ही नही होगा तो कैसा प्रजातंत्र और कैसी उसकी सफलता ? देश की आन बाण शान रखने के लिए सेना ने अनेक युधों में जो बलिदान दिए हैं वह सर्व विदित हैं और आज भी देश के कुछ ऐसे सीमावर्ती इलाको में हमारे जवान और अफसर सीमा के प्रहरी बन कर तैनात हैं जिनके नाम तक देशवासी नहीं जानते हैं। अपने परिवार से दूर जटिल परिश्तिथियों में उनका उद्येश्य केवल देश की अखंडता और प्रभुता की रक्षा करना है। कोई दंगा,प्राकर्तिक आपदा या आतंकवादी हमला ,सेना की कर्तव्यनिष्ठा केवल देश की सीमाओं तक सीमित नहीं है ...सेना कर्म में विश्वास रखती हैं बातों में नहीं और यही कारन है की टीवी पर बातें करते केवल नेता या बाबू दीखते हैं ,सैनिक नहीं॥
सेना की मांगो को ले कर सरकार की अनदेखी से सैनिको का मनोबल कम हुआ है और युवा वर्ग सेना में आने के लिए इच्छुक नही है। यदि योग्य युवक सेना को एक आकर्षक रोज़गार के रूप में नहीं देखेंगे तो कैसे देश को नए सैनिक मिलेंगे। कुछ लोग कहते हैं के सेना में आना तो जज्बे पर निर्भर होता है रुपये पैसे पर नहीं..मैं मानती हूँ की बहुत से युवक हैं जो अभी भी वर्दी उस से जुड़े अभिमान के लिए पहनना चाहते हैं पर क्या केवल अभिमान और जज्बे से राशन ख़रीदा जा सकता है ?,बच्चों की स्कूल की बढती फीस भरी जा सकती है ?,इस महंगाई में एक छोटा सा घर खरीदा जा सकता है ?
अंत में यही कहना चाहती हूँ की अगले पाँच वर्षों में मैं कांग्रेस से एक बेहतर नजरिये की उम्मीद रखती हूँ । में उम्मीद रखती हूँ की सेना के मनोबल को बढ़ने के लिए कुछ ठोस कदम उठाये जायेंगे और योग्य युवाओं को सेना में आने से सशक्त कारन दिए जायेंगे क्योंकि एक मजबूत सेना देश की मजबूती का आधार है ।
(इस लेख को मेरे पति के कार्य से जोड़ कर न देखा जाए ,यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं )