(बहुत दिनों से , महीने लिखना शायद ज्यादा बेहतर होगा कुछ भी लिखना नहीं हो पाया ... कुछ तो क्रियेटिव ब्लोक था जहाँ मैं कुछ भी नया चाह कर नहीं लिख पा रही थी और एक बहुत बड़ा कारण था एक नया बदलाव...कुछ महीनों पहले पता चला कि मेरा प्रमोशन जल्द ही एक माँ के रूप में होने वाला है और इसलिए कभी सेहत तो कभी पल पल होते मूड स्विंग्स ने कुछ लिखने ही नहीं दिया। कुछ दिनों पहले गौतम जी ने ईमेल में याद दिलाया कि मैंने लिखना बिल्कुल बंद कर दिया है..नीरज तो पहले ही इस पर नाराज़गी दिखा चुका था तो आज कुछ लिखने कि कोशिश की है...आज की यह रचना मेरी होने वाले संतान के लिए है क्योंकि पिछले पाँच महीनों से और अब आने वाली पूरी जिंदगी भर शायद मेरे ज्यादातर भाव,संवेदनाएं,सपने हमारे परिवार को पूर्ण करने वाले इस नए सदस्य से ही जुड़े होंगे..।)
बस सोचती थी
कब प्रकृति का वह हिस्सा बन पाउंगी
सृजन के चक्र में कड़ी बन
कब मैं भी जननी कहलाऊंगी
अपने भीतर तुम्हारे होने के एहसास से
वह सपना सच होता है
कल्पना में नए रंग भर जाते हैं
बीते कुछ महीने,आने वाले तमाम
अपने जीवन के सबसे पूर्ण पल नज़र आते हैं
एक छोटे सी अंश ही तो थी
आज तुम्हारी हर छोटी हलचल भी पता चलती है
तुम्हारी धड़कन की आवाज़
मालकोश सी लगती है
ख़ुद को हमेशा तुम से बतियाते हुए पाती हूँ
क्या सुन पाती हो वह गीत जो तुम्हारे लिए गाती हूँ
इतना अधित्पत्य है तुम्हारा अभी से
कि खाना भी तुम्हारी पसंद का खाती हूँ
तुम्हारे आने की अनुभूति है
जो इस बढे वज़न को सुंदर बनाती है
हर बदलाव,नई आती जिम्मेदारियों पर
चिंता नहीं ,हँसी की रेखाएं खिंच जाती हैं
तुम्हारे होने से
औरत होने के मेरे अस्तित्व को
गर्व की ,शक्ति की नई परिभाषा मिल जाती है
कौन कहता है नारी अबला है
वह तो सृष्टि का पहिया बन उसे चलाती है
समय पक्षी होता तो फुर्र से उड़ा देती मैं
आँखें यूँ बैचैनी से तुम्हारे आने की राह तकती हैं
तुम्हारा चेहरा मेरी कल्पना में साकार है
मेरी आँखें ..नीरज की मुस्कान
दिखाई देता तुम में हम दोनों का सार है
औरों के लिए तुम बेटा या बेटी हो सकते हो
मेरे लिए मेरा हिस्सा हो - अटूट
वह क्षण जब तुम आँचल में लिपटे सीने से लगी होगी
शायद शब्दों की पहुँच से दूर होगा
आंखों से निकलते खुशी के सैलाब को समेटते हुए
मैं उस क्षण पर क्या लिख पाऊँगी
उस दिन तो तुम अपनी नन्ही उँगलियों से
माँ होने की मेरी एक नई पहचान लिख जाओगी