लगभग एक महीने से ब्लॉग से दूर हूँ ..हमेशा कुछ अधूरा सा लगता रहा। इन दिनों बहुत व्यस्त रही ,न लिखने का समय मिला और न ही नया टेलीफोन कनेक्शन...कुछ तकनीकी कारण बताये गए है देखते है कब तक हो पता है । कल "विजय दिवस" था ..करगिल की लडाई को एक दशक हो चुका है ..तब मैं कॉलेज में थी,कुछ चेहरे तब टीवी पर देखे थे थे ,कल फिर से देखे ..उस युद्घ के दृश्य देखे तो सोचा जब इतने दिनों बाद कुछ लिखना है तो क्यों न श्रद्धांजलि स्वरुप कुछ लिखूं...एक बार फिर एक रचना उन लोगों को समर्पित जो मेरे दिल के सबसे करीब हैं।
कुछ अल्हड़ २४-२५ साल के लड़के ही तो थे
कुछ सपने थे आंखों में
बातों में हँसी मजाक के लहज़े थे
मोटर साइकल हिरोइनों की बातें अच्छी थी लगती
प्रेमिका के नाम की लहरें थी उठती
मटमैली वर्दी, बढ़ी दाढ़ी वाले उन चेहरों को
कल टीवी पर फिर से देखा
आँसूं बरबस फूट पड़े
यह तो थे वही रणबांकुरे
दशक पहले
करगिल द्रास की वादियों में
दुश्मन पर बिजली से जो थे टूट पड़े
विक्रम बत्रा या विजयंत थापर
अनुज नायर या योगेन्द्र यादव
शौर्य के नाम अलग पर गाथा थी एक
साहस नेतृत्व को मिली थी परिभाषा अनेक
दुर्गम उन चोटियों को
ऑंखें जिनकी ऊंचाई नाप नही पाती हैं
फौलादी कुछ क़दमों ने बौना बना दिया
२५ जुलाई तारीख थी जो महज़ एक
"विजय दिवस" बन जाने का मान दिया
५३३ नाम द्रास में बने उस स्मारक पर खुदे हैं
और उन जैसे कितने और
उसी जज्बे को लिए मुस्कुराते हुए अब भी वहां डटें हैं
कभी हो सके तो उस स्मारक के आगे सर झुकाना
"बत्रा टॉप" ,"टाइगर हिल" देखना
गाड़ी अपनी हाइवे "एक अल्फा" पर चलाना
शायद बेहतर समझ पाओ
उस शहादत को जो बर्फीले सन्नाटे में गर्व से सोती है
याद कर जिसे आज भी कोई आँख कहीं रोती है
समय निकाल एक मोमबत्ती उनकी याद में जला देना
सभी करें तो आसान कितना है
१०० करोड़ "अमर जवान ज्योति " बना देना
स्वागत है मैम.....तो नये स्टेशन पर सब व्यवस्थित हो गया...
ReplyDeleteइस दिन की कुछ ऐसी यादें, सब-की-सब दुखदायी, हृदयविदारक, जुड़ी हैं कि चाह कर भी कुछ नहीं लिख पाया...बत्रा, मनोज, अनुज के साथ तो एकेडमी के दिन जुड़े हैं....संग-संग की रोलिंग, क्रासकंट्री, पनिसमेंट, क्लासेज...
किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता मैम..अपना ये मुल्क नाशुक्रों का मुल्क है...सब के सब बस बात बनाने वाले....
मत छेडि़ये इन स्मृतियों को...इन्होंने चर्चा में आने के लिये कुछ नहीं किया था...काम था, करना था, किया!
thats all...
wish u all the best for the new place!
सच कहा गौतम सर आपने किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता...बस दिन बना दिया और उस दिन कुछ बोल दिया...बस बातें बनाने वाले ही हैं सब ....सिर्फ बातें
ReplyDeleteहकीकत से आँखें मिलाती संवेदनशील रचना।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
उस शहादत को जो बर्फीले सन्नाटे में गर्व से सोती है
ReplyDeleteयाद कर जिसे आज भी कोई आँख कहीं रोती है.
संवेदनशील रचना है...
अति संवेदनशील.
ReplyDeleteअमर शहीदों को नमन!!
आपने बहुत भावुक कर देने वाली पोस्ट लिखी और उस पर से गौतम जी की टिपणि. उन वीर शहीदों को सलाम. सही कहा गौतमजी ने उन्होने जो किया वो किसी हेतु से नही किया. उन्ही की वजह से हम चैन से सो पा रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
dhnya hain aapke vichaar..........
ReplyDeleteaapka abhinandan !
गौतम जी से सहमत..आज उन्ही के कारन देश जैसी अवधारण सुरक्षित है ..दुबारा स्वागत.
ReplyDeleteभावुक कर देनेवाली रचना।
ReplyDeleteछब्बीस जुलाई को जिम्मेदारी दे दी गई। विजय दिवस मनाना है। एक घंटे का स्पेशल एपिसोड। उस दिन आपको याद कर रहा था। पता था कि सक्रिय ब्लॉगिंग कर रही होती आप तो मुझे कुछ बेहतरीन लाइनें मिल जाती अपने प्रोग्राम कि लिए। बहुत मार्मिक लिखा है आपने। अंत में सच्ची सलाह और हर दिल में शहादत के लिए सम्मान भरने वाली लाइनें हैं।
ReplyDeleteकनेक्शन मिलने भी ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। अब प्राइवेट कंपनियों से बीएएसएनएल भी होड़ करने की कोशिशों में लगा है।
मेजर की टिप्पणी के बाद कुछ कहने को नहीं बचा है ...बस इतना दुःख है अगर प्रधानमंत्री एक बार सिर्फ चंद मिनटों के लिए कारगिल चले जाते तो वहां ड्यूटी निभा रहे जवानो के हौसले बढ़ जाते ....शहीदों का कोई राजनेतिक दल नहीं होता .
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ReplyDeletebahut acha blog banaya hai aapne iske liye aapko badut dhnyabad deta hu.
ReplyDeletemera blog bhi dekhiye. aur join kijiye
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Dhnyabad.
nice thoughts Priyanka, but I really feel the last thing we as an Army need is sympathy. Nobody continues to serve without pay. So it isnt really that we are all doing it for the Country per se. Its ok. All jobs have their cons. We have ours.I am equally proud of the soldiers who laid their lives for their job. Some of them must have done it for the nation too. May be all of them. God bless their souls.
ReplyDeleteYou know what I am not proud of? My fellow countrymen. For the most of them its just a day, a movie, a song, a photo, a newspaper article, or something like that, which stays for that respective duration. And then its history. Trust me , it wasnt the Britishers who wrote our history, it was our people. Just that they never had the right amount of patriotism or similar feeling. And that's why most of our history is about people and places, not about our country.
मेजर साब और अनुराग जी के बाद अब कहने को बचा है कि आज कल पोस्ट में विलंब बढ़ता जा रहा है .
ReplyDeletethanks...
ReplyDeleteaap mere blog me bhi aaiye,,
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