Monday, July 27, 2009

श्रद्धांजलि

लगभग एक महीने से ब्लॉग से दूर हूँ ..हमेशा कुछ अधूरा सा लगता रहा। इन दिनों बहुत व्यस्त रही ,न लिखने का समय मिला और न ही नया टेलीफोन कनेक्शन...कुछ तकनीकी कारण बताये गए है देखते है कब तक हो पता है । कल "विजय दिवस" था ..करगिल की लडाई को एक दशक हो चुका है ..तब मैं कॉलेज में थी,कुछ चेहरे तब टीवी पर देखे थे थे ,कल फिर से देखे ..उस युद्घ के दृश्य देखे तो सोचा जब इतने दिनों बाद कुछ लिखना है तो क्यों न श्रद्धांजलि स्वरुप कुछ लिखूं...एक बार फिर एक रचना उन लोगों को समर्पित जो मेरे दिल के सबसे करीब हैं।


कुछ अल्हड़ २४-२५ साल के लड़के ही तो थे
कुछ सपने थे आंखों में
बातों में हँसी मजाक के लहज़े थे
मोटर साइकल हिरोइनों की बातें अच्छी थी लगती
प्रेमिका के नाम की लहरें थी उठती
मटमैली वर्दी, बढ़ी दाढ़ी वाले उन चेहरों को
कल टीवी पर फिर से देखा
आँसूं बरबस फूट पड़े
यह तो थे वही रणबांकुरे
दशक पहले
करगिल द्रास की वादियों में
दुश्मन पर बिजली से जो थे टूट पड़े
विक्रम बत्रा या विजयंत थापर
अनुज नायर या योगेन्द्र यादव
शौर्य के नाम अलग पर गाथा थी एक
साहस नेतृत्व को मिली थी परिभाषा अनेक
दुर्गम उन चोटियों को
ऑंखें जिनकी ऊंचाई नाप नही पाती हैं
फौलादी कुछ क़दमों ने बौना बना दिया
२५ जुलाई तारीख थी जो महज़ एक
"विजय दिवस" बन जाने का मान दिया
५३३ नाम द्रास में बने उस स्मारक पर खुदे हैं
और उन जैसे कितने और
उसी जज्बे को लिए मुस्कुराते हुए अब भी वहां डटें हैं
कभी हो सके तो उस स्मारक के आगे सर झुकाना
"बत्रा टॉप" ,"टाइगर हिल" देखना
गाड़ी अपनी हाइवे "एक अल्फा" पर चलाना
शायद बेहतर समझ पाओ
उस शहादत को जो बर्फीले सन्नाटे में गर्व से सोती है
याद कर जिसे आज भी कोई आँख कहीं रोती है
समय निकाल एक मोमबत्ती उनकी याद में जला देना
सभी करें तो आसान कितना है
१०० करोड़ "अमर जवान ज्योति " बना देना