Sunday, September 27, 2009

शत शत नमन

102 वर्ष पहले 27 सितम्बर 1907 को एक युगपुरुष का जन्म हुआ था जिन्हें हम महान शहीद भगत सिंह के नाम से जानते हैं । यह और बात है की सुबह से ले कर अब तक न तक टीवी पर न ही समाचार पत्र में मैंने आज के दिन का ख़ास जिक्र सुना, देखा या पढ़ा है....क्या यह कुछ दिन बाद आने वाले 2 अक्तूबर के दिवस पर लागू होता है ? हो सकता है कुछ लोगों को मेरा यह कहना अच्छा न लगे पर मुझे फिर भी यह कहने में जिझक नहीं है कि जो भगत सिंह उमर में आधे हो कर भी गाँधी जैसी लोकप्रियता हासिल कर गए थे,भारत के इतिहास पर अपनी छाप छोड़ गए थे। यदि गाँधी को राष्ट्र पिता को दर्जा दे दिया गया तो क्या भगत सिंह इस देश के साचे सपूत नहीं थे? तो फिर उनके जन्मदिवस को मनाने में या उन्हें याद करने में यह भेदभाव क्यों?  
आज उनके जन्मदिवस पर देश के एक सच्चे सपूत को मेरा शत शत नमन और ज्यादा नमन उस माँ को जिन्होंने उन जैसे बेटे को जन्म दिया ।

Thursday, September 24, 2009

इतने दिन बाद कुछ लिखने का मन हुआ

गत कुछ दिनों में बहुत से मित्रों ने ईमेल के जरिये शिकायत की कि आज कल मैं कुछ लिख क्यों नहीं रहीं हूँ... लिख पाने के कारण कई थे पर एक बहुत बड़ा कारण था कि इन दिनों में दिल ने किसी बात पर प्रतिक्रिया नहीं की ..किसी बात ने इतना छुआ या कचोटा नहीं,लिखने की कोई प्रेरणा या मुद्दा नहीं मिला पर कल फिर कुछ हुआ जो दिल को संवेदना से भर गया।


अभी मेजर आकाश सिंह को शहादत को एक महीना भी नहीं हुआ है कि कल बांदीपुर में मेजर जे. श्रीनिवास सूरी और नायक खुशाल सिंह ने देश के लिए अपने प्राणों कि बाज़ी लगा दी और काफी देर तक चले भीषण एनकाउंटर में दो मेजर और दो जवान भी घायल हुएशहीदों ने अपने प्राण अपने कर्तव्य कि राह में न्यौछावर किए, कई लोगों के लिए इस में कोई बड़ी बात नहीं ..रूटीन ख़बर है ऐसा तो वहां होता ही रहता है ...पर मैं इस विषय पर कुछ भावनात्मक हूँ ,कुछ लोगों ने मुझे कहा भी है कि मैं क्यों एक ही विषय पर इतना लिखती हूँ कारण यह है कि लखनऊ में मायावती कि मूर्तियों, भाजपा कि कलह,राहुल गाँधी की रेल यात्रा त्यादि पर लिखने वाले मित्र बहुत हैं पर सैनिकों के विषय पर मेजर गौतम या जयंत जी जैसे गिने चुने लोगों को लिखते देखा है। ऐसा नहीं कि वह हमारे लिखने के मुहताज हैं,चंद शब्द क्या इन्साफ करेंगे उनके जज्बे से पर मन दुखी हो उठता है जब देखती हूँ कि कहीं कोई देश के लिए जान दे गया है और समाचार चैनल के टिक्कर पर उनके लिए "शहीद हो गए " लिखे जाने की जगह "मारे गए" लिखा हुआ पाती हूँ। ुःख होता है की किसी की जान टिक्कर की एक लाइन भर है पर युवराज सिंह की ऊँगली टूट जाना आधे घंटे की चर्चा का विषयऐसे तो हर जगह की ख़बर दिख जाती है इन चैनलों पर , २४ घंटे से चल रही मुठभेड़ को चैम्पियन ट्राफी की बार बार दोहराई जा रही सुर्खियों और टीम इंडिया को कोच द्वारा दिए गए नए "काम मंत्र " के बीच मिला तो कुछ एक या आधा मिनट।


कल ही वायुसेना अध्यक्षने अपने एक बयान में कहा कि वायुसेना से पास पर्याप्त मारक क्षमता नहीं हैंएक ख़बर के अनुसार वायु सेना अकादमी में दो हफ्ते में पायलट प्रशिक्षण का नया बैच शुरू होने वाला हैं पर प्रथम चरण के प्रशिक्षण में उपयोग होने वाले यानों का पुरा फ्लीट ग्राउंड कर दिया गया हैं -कारण ? गत कुछ समय में ट्रेनिंग के दौरान उन पर हुए जानलेवा हादसे और वह इसलिए क्योंकि ७० के दशक के इन विमानों की उमर अब पुरी हो चुकी है पर कुछ नया खरीदने के लिए रक्षा मंत्रालय के नेता और बाबूओं की नींद अभी नहीं खुली हैऐसी सूरत में ट्रेनिंग शायद सीधे दूसरे चरण से शुरू कि जायेगी जो प्रशिक्षण के नियमों के विरूद्व है


इस देश के नौकर शाहों ने और राजनेताओं ने अपने निहित स्वार्थ में देश की सैन्य क्षमता को खोखला कर दिया हैलालफीताशाही ने, भ्रष्टाचार ने सेना की तकनीकी क्षमता में हमें चीन जैसे देशों से तीन तीन चार चार साल पीछे कर दिया है। एक समाचार चैनल पर आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के पास जहाँ ४०० आर्टिलरी गन हैं चीन के पास १४०० हैं , उनके ३०० से ऊपर युद्धपोतों के मुकाबले हमारे पास कुछ सौ से ऊपर हैंबाबुओं से ले कर नेता सब रक्षा से जुड़े इन सौदों में अपनी चांदी बनाने में मशगुल हैं और उनके भ्रष्टाचार की बलि कहीं कोई सैनिक चढ़ता है या कोई पायलट


भ्रष्टाचारियों की इसी जमात में शामिल होने के लिए या अपनी मेम्बरशिप को रीन्यू कराने के लिए दो राज्यों में कवायद चल रही है..नेताओं के साथ बेटा बेटियों में भी भी खूब मारामारी है,बहती गंगा में सब हाथ क्या पुरा स्नान करना चाहते हैं। यह और बात है कि देश की बात करने वाले इन खादीधारियों की संतानें देश की बात करती हैं पर सफ़ेद चोगे को छोड़ हरी वर्दी पहनने कि बात कभी नहीं करती ,हर नेता का बेटा नेता और बाबू का बेटा बाबू बनना चाहता हैं ..क्यों? क्या यह बताने कि जरुरत हैं ...दुःख कि बात बस इतनी है कि इन सब ने मिल कर इतना तो तय करा दिया है कि आज एक सैनिक का बेटा सैनिक नहीं बनना चाहता।