Monday, June 1, 2009

माँ

(माँ..एक शब्दमें करुना संस्कार का सागर समाया है,भगवान् नहीं हो सकते थे हर जगह तभी माँ को बनाया है

मेरी भी माँ है जिसके पास पंख लगा उड़ जाना चाहती हूँ ,आँखें है नम माँ तुम बहुत याद आती हो ...

आज पुरानी तस्वीरे देखते हुए मम्मी की बहुत याद आई ..कलम उठाई तो उन्ही के लिए कुछ लिखने का प्रयास किया..चाहती हूँ की मम्मी जरुर पढ़ें )


तुम्हारे प्यार ,फटकार, दुलार

कभी डांट कभी मनुहार में पली बढ़ी हूँ मैं

तुमने जन्म दिया तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ मैं


तुम्हारी ऊँगली पकड़ना - चलना

उन्ही को थाम गिर कर उठी हूँ मैं

तुम्ही वह रफ़्तार हो जिस से आगे बढ़ी हूँ मैं

तुमने जन्म दिया तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ मैं


वो आँचल तुम्हारी बाँहों के घेरे

जहाँ दिखे तम में सवेरे

तुम्हारी ही छाया है जिस से ढकी हूँ मैं

तुमने जन्म दिया तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ मैं


तुम्हारी शिक्षा सिद्धांत और बातें

जैसे सभी वेद पुराण हो उन में समाते

तुम ही वह कुम्हार हो जिसके हाथों घड़ी हूँ मैं

तुमने जन्म दिया तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ मैं


तुमसे लड़ना झगड़ना जवाब तक दे जाना

हर बार फिर बात करने की कसम खाना

पर तुम ही वह रस्ता हो जिस पर हर बार वापिस मुडी हूँ मैं

तुमने जन्म दिया तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ मैं


(आज बहुत सी बातें याद रही हैं ..कैसे बचपन में जब मैंने एक फल के झूठे छिलके खाए थे तो मम्मी ने दिनों तक मुझे वही फल खिलाया था ...घर में फ्रिज नहीं था और मैं पड़ोसियों से ठंडा पानी मांगने जाती थी जो माँ को ना गवारा था , सब खर्चों में कटौती कर उन्होंने सबसे पहले मेरे लिए फ्रिज मंगाया था ..एक लहंगा जो उन्होंने अपने हाथ से सिला था ..मेरे गणित के पेपर में रात भर मेरे साथ जगती थी ..हॉस्टल भेज छुप कर रोती थी ..बेटियों से जो भेद भाव की बातें सुनती हूँ वह तो कभी था ही नहीं अलबत्ता कई बार लोग बेटों को उस तरह से बड़ा नहीं करते जैसे हम दोनों बहनों को किया गया ..माँ से सिखा की हमेशा स्पष्टवादी रहो ,बातें लपेट के करना उन्हें आता है उनसे सिखा ...ख़ुद शायद उन्होंने कुछ ही जोड़ी कपड़े बनवाये हो पर हमारी हर जरुरत पुरी की ..याद है मेरी विदाई मैं कितना रोई थी,आज भी रोती हैं जब भी मैं दिल्ली से वापिस आती हूँ...माँ जैसा कोई नहीं होता..शादी से पहले तो शायद इतना समझ में नहीं आता था पर पिछले छेह सालों में उनसे इतना दूर रह कर समझ में आया है ..लव यु माँ !!!)

26 comments:

  1. क्या कहूं? आपके अति निजी अनुभव हैं। अच्छा लिखा है आपने, मां को फोन करके जरूर पढ़ने का अनुरोध कीजिए। ये उनके प्रेम का तिल भर प्रतिदान होगा। एक बार फिर आंखें भीग जाएंगी उनकी, लेकिन आंसू खुशी के ढुलकेंगे। आपके निजी अनुभवों से एक वाकया मेरी जिंदगी का भी मिलता है। बात फल की ही थी। सेब मोटा था और खाया न जाता था। मुझसे बड़ी बहन कह रही थी भाई मुझे दे दे, लेकिन नहीं दिया और नाली में फेंक दिया। थी तो शरारत लेकिन मां ने भेदभाव के नजरिए से देखा और अध्यापिका जी मार आज तक याद है। मैं बहुत तंग करता था मां को, आज भी करता हूं। त्योहारों पर घर नहीं जाता और मां बुलाती रहती है। कुछ आदत खराब है और कुछ पेशा मजबूर कर देता है।

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  2. maa ----- jinta likho utna kam hai

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  3. मधुकर जी अपनी माता जी के बारे में जो बताया उसे पढ़ कर मुझे ख़ुद की माँ के कड़क अनुशासन की भी याद आ गई ..तब जब टोकती थीं ,सज़ा देती थीं तो बहुत ख़राब लगता था पर आज जब ख़ुद माँ बनने की इच्छा रखती हूँ तो समझ आता है की माँ की भूमिका कितनी कठिन है ..आप ने जो लिखा कि यह रचना माँ के प्रेम का तिल भर प्रतिदान होगा दिल को छु गया ..दुनिया में हर किसी कि जाती,धरम,भाषा इत्यादि होगी पर माँ कि नहीं ..वो तो बस माँ है....

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  4. PRIYAANKA JI MAINE AAJ MAA BAN KAR JAANA HAI KI BACHHE VASTAV ME MAA KE LIYE KYA HOTE HAIN . AAPKI BHAVNAAYEIN MERE DIL KO CHOO GAIN MERI MAA BHI KUCH KUCH AAPKI MAA KI TARAH HI THI (SAHYAD KHUD KE LIYE KUCH HI JODI KAPDE BANVAAYE HONGE , FRIJ MANGAVANA )SACH LIKHON HUM BETIYON KA BAS CHALE TO MAA KYA APNE PITA KO BHI HUM AAJIVAN APNE PASS SANJO KAR RAKHEIN LEKIN SAMAAJ KI KACHOT DENE VAALI PARAMPARAAYEIN HAMARI ICHHAON KA DAMAN KAR DETI HAIN ....HAI NAA ?

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  5. अच्छी भावना का इजहार है। कहते हैं कि-

    ठंढ़क माँ के नाम की गरमी को शरमाए।
    ममता के आँचल से धूप भी छनकर आए।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  6. क्या कहूँ ........

    आपकी पोस्ट को पढ़कर मन भावुक हो गया !

    'मां' यानी एक शब्द में लिखा गया "महाग्रंथ"

    हार्दिक शुभकामनाएं एवं मां को प्रणाम !!

    आज की आवाज

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  7. स्त्री मां बनकर प्रकृति की सर्वोत्तम कृति हो जाती है यानि भगवान अगर है तो उसके सबसे करीब और अगर भगवान नहीं है तो दुनिया में सबसे ऊपर
    मेरी मां अब नहीं है,लेकिन मां अब भी उतने ही करीब है दिल के
    मां पर मेरी कविताएं पढें यहां old-post में

    http//:katha-kavita.blogspot.com
    and gazal`s at
    http//:gazalkbahane.blogspot.com

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  8. अब क्या कहूं..
    शुभकामनाएं......

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  9. ज़िंदगी की तल्ख़ सच्चाइयों के बीच भावनाएं हमारा संबल बनती है।
    सुस्वागतम्.......

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  10. आपकी ,पोस्ट को पढ कर मन मे दर्द भर आया। बहुत खुब। शुभकामनाये

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  11. बहुत ही अच्छी प्रस्तुती है बहुत ही वेहतरीन कविता आप का बहुत बहुत स्वागत है
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  12. माता की ममता एक सॉचे की तरह हैं, जिसमें वह अपने मन के अनुरुप अपनी सन्तान का निर्माण करती है।

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  13. मुझे विशवास है आपकी रचना, आपकी निजी बातों ने सब को भावौक कर दिया होगा................. माँ का नाम आते ही दिल में जो एहसास आता है , उसे बयान करना मुश्किल है............... बहूत ही सुन्दर लिख है........माँ की यादों की समेटे लाजवाब

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  14. बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

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  15. माँ होती ही ऐसी है.... सहज भाव से माँ की यादों का सुन्दर चित्रण...

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  16. भावना जी ,मधुकर जी,रिंकू जी,मिनाक्षी जी ,परमजीतजी,अशोक जी,श्याम जी ,दिगंबर जी,दीपक जी,राजेंद्र जी,संगीता जी,मिथिलेश जी,प्रवीन जी ,प्रकाशजी,श्यामल जी ,समय जी...आप सभी ने वक्त निकाल कर यह रचना पढ़ी ,अपने विचार प्रस्तुत किए यह मेरे लिए बड़ी हौसला अफजाई है ..बहुत धन्यवाद ..भविष्य में भी आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा !! ब्लॉग पर आप सब का आप की टिपण्णी का यहाँ तक की आलोचना का भी सदैव स्वागत है ..

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  17. ravi ji aur abhi ji ka naam chut gaya..par aapko bhi bahut dhanyavaad!!

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  18. आखिर रुला ही दिया ना !!

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  19. आज आपका ब्लॉग देखा..... अच्छा लगा. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नयी ऊर्जा मिले जिससे वे जन-सरोकारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन सकें..
    कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी आयें :-
    http://www.hindi-nikash.blogspot.com

    सादर-
    आनंदकृष्ण, जबलपुर
    मोबाइल : 09425800818

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  20. FANTASTIC!!!!!!

    Do not have any other word for this one.

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  21. दी, आपकी ये कविता दिल को छू गई। इतने सुंदर और भावपूर्ण शब्दों में आपने मां को बयां किया... ऐसा लगा पहली बार मां से मिली हूं। सभी मांए ऐसी ही तो होती हैं, इसलिए उनके बिना जीवन अधूरा सा लगता है।
    कविता की तुकबंदी भी बहुत अच्छी है।

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  22. namaskar mitr,

    aapki saari posts padhi , aapki kavitao me jo bhaav abhivyakt hote hai ..wo bahut gahre hote hai .. aapko dil se badhai ..

    is kavita ne to bus rula diya hai ....

    dhanyawad.....

    meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..

    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html

    aapka

    Vijay

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  23. "माँ..एक शब्दमें करुना संस्कार का सागर समाया है,भगवान् नहीं हो सकते थे हर जगह तभी माँ को बनाया है"
    मनोभावों को नमन - देर से आया पर दुरुस्त आया. कभी मेरे लोग पर आना हो सके तो "गुडिया की पुड़िया" पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित रहेगी

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आप का ब्लॉग पर स्वागत है ..आप की प्रतिक्रियाओं ,प्रोत्साहन और आलोचनाओं का भी सदैव स्वागत है ।

धन्यवाद एवं शुभकामनाओं के साथ

प्रियंका सिंह मान