( नीरज को दोस्त कहना मुझे ज्यादा भाता है पर जो रिश्ता है उसके बनिस्बत कहूँ तो मेरे पति हैं । दो दिन पहले की बात है नीरज ने मुझे मजाक में कहा "जब देखो लिखती रहती हो ,कभी मुझ पर तो कुछ नहीं लिखती"..उसकी आदत है की ऑफिस से आ कर एक बार मेरे ब्लॉग की जरुर देखता है। उन आंखों में जब प्रशंसा और गर्व देखती हूँ तो एक बार फिर कलम उठाने की प्रेरणा मिलती है ..आज की यह रचना मेरी उसी प्रेरणा के लिए है ,मेरे सबसे अच्छे दोस्त के लिए है ..शायद यह सरप्राईज़ अच्छा लगे !!!)
तुम कहते हो तुम पर कभी क्यों नहीं लिखती
कैसे लिखूं ?
कभी शब्द तो कभी पंक्तियाँ ही पूरी नहीं पड़ती
तुम से अपने रिश्ते पर लिखना आसान नहीं है
बस विवाह तक ही इसकी सीमा और सार नहीं है
अब तो जीवन ही तुम संग लिख दिया है
कागज़ पर कुछ लिखूं तो यूँ लगे
भावनाओं को शब्दों में जकड दिया है
आज तुम्हारे लिए कलम उठाई है
क्या वर्णन से न्याय हो पायेगा ,यह भी कठिनाई है
तुम वह आँखें हो जिनसे हूँ देख पाती
पंख जिनसे नित नई उड़ान हूँ भर जाती
रंग जिनसे जीवन का हर इन्द्रधनुष बना है
रौशनी जिस से गुम राहें हूँ ढूंढ़ पाती
तू आइना है
तुझमे देख श्रृंगार अच्छा लगता है
आइना जो सच और गलतियों से मुझे रूबरू करता है
तुम शब्द हो जब निशब्द हूँ हो जाती
गीत जिस पर बरबस नाच जाती
तुम स्वपन हो
स्वपन की सच्चाई भी
कोमल कभी कठोर
कभी कड़वे कभी मीठी मिठाई भी
तुम दोस्त हो
तुमसे कुछ कहते दिल नहीं जिझकता
तुम हर राज़ में शामिल हो
आँगन में तुम्हारे मेरी खुशी तो कभी आंसू का मेला है सजता
निस्वार्थ हो तुम
शर्तें नहीं लगाते हो
जैसी हूँ मैं मुझे वैसे ही अपनाते हो
सफलता में मेरी अपनी सफलता देख पाते हो
मेरे ऊपर कदम रख आगे नहीं बढ़ जाना चाहते हो
तुम कभी माँ कभी पिता
कभी बहन कभी सहेली हो
धीर गंभीर तो कभी चंचल अठखेली हो
दामाद नहीं तुम बेटे हो
छोटे बड़े सब के चहेते हो
करवा चौथ का हर व्रत साथ रखते हो
नारी के सम्मान की , बराबरी की मुझ से भी ज्यादा लडाई लड़ते हो
तुम्हे देखती हूँ तो अपनी किस्मत पर फ़क्र होता है
कल से ज्यादा और कल से कम
हर दिन तुम्हारे लिए प्रेम और आदर बढ़ता है
उपमाएं तो और भी दे दूँ तुम्हे कई
पर तुम वह "नीरज" हो जो नित दिन मेरे मन सरोवर में खिलता है
तुम कहते हो तुम पर कभी क्यों नहीं लिखती
कैसे लिखूं ?
कभी शब्द तो कभी पंक्तियाँ ही पूरी नहीं पड़ती
तुम से अपने रिश्ते पर लिखना आसान नहीं है
बस विवाह तक ही इसकी सीमा और सार नहीं है
अब तो जीवन ही तुम संग लिख दिया है
कागज़ पर कुछ लिखूं तो यूँ लगे
भावनाओं को शब्दों में जकड दिया है
आज तुम्हारे लिए कलम उठाई है
क्या वर्णन से न्याय हो पायेगा ,यह भी कठिनाई है
तुम वह आँखें हो जिनसे हूँ देख पाती
पंख जिनसे नित नई उड़ान हूँ भर जाती
रंग जिनसे जीवन का हर इन्द्रधनुष बना है
रौशनी जिस से गुम राहें हूँ ढूंढ़ पाती
तू आइना है
तुझमे देख श्रृंगार अच्छा लगता है
आइना जो सच और गलतियों से मुझे रूबरू करता है
तुम शब्द हो जब निशब्द हूँ हो जाती
गीत जिस पर बरबस नाच जाती
तुम स्वपन हो
स्वपन की सच्चाई भी
कोमल कभी कठोर
कभी कड़वे कभी मीठी मिठाई भी
तुम दोस्त हो
तुमसे कुछ कहते दिल नहीं जिझकता
तुम हर राज़ में शामिल हो
आँगन में तुम्हारे मेरी खुशी तो कभी आंसू का मेला है सजता
निस्वार्थ हो तुम
शर्तें नहीं लगाते हो
जैसी हूँ मैं मुझे वैसे ही अपनाते हो
सफलता में मेरी अपनी सफलता देख पाते हो
मेरे ऊपर कदम रख आगे नहीं बढ़ जाना चाहते हो
तुम कभी माँ कभी पिता
कभी बहन कभी सहेली हो
धीर गंभीर तो कभी चंचल अठखेली हो
दामाद नहीं तुम बेटे हो
छोटे बड़े सब के चहेते हो
करवा चौथ का हर व्रत साथ रखते हो
नारी के सम्मान की , बराबरी की मुझ से भी ज्यादा लडाई लड़ते हो
तुम्हे देखती हूँ तो अपनी किस्मत पर फ़क्र होता है
कल से ज्यादा और कल से कम
हर दिन तुम्हारे लिए प्रेम और आदर बढ़ता है
उपमाएं तो और भी दे दूँ तुम्हे कई
पर तुम वह "नीरज" हो जो नित दिन मेरे मन सरोवर में खिलता है
( जब हमारा विवाह हुआ था तो मैं २१ की और नीरज २४ साल का था ..अब सात साल बीत चुके हैं और ऐसा लगता है जैसी मैं इन सालों में नीरज के साथ बड़ी हुई हूँ... पढ़ाई या करियर ,सच यह है की मेरे लिए मुझ से भी ज्यादा सपने नीरज ने देखे हैं । सामाजिक मान्यताओं को उन्होंने मेरे सामने कभी तरजीह नहीं दी इसलिए मुद्दा शादी के बाद लगभग ५ साल तक पढ़ाई करने का हो या फिर संतान के लिए सबके विरुद्ध जा कर रुकना, नीरज ने हर मोड़ पर दोस्त की तरह साथ दिया ... यदि मैं कहती हूँ कि विवाह बाद मैंने अपना अस्तित्व खोने नहीं दिया तो उसके लिए मुझ से ज्यादा श्रेय नीरज को जाता है ..)
पहली बात तो ये कि आपकी कविता मुझे बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteऔर आप खुशनसीब हैं कि आपको पति में एक दोस्त और एक अच्छा इंसान मिला
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
arre yeh to yisa likha hai jaise meri bibi ne mere baare me likha ho
ReplyDeleteyah khoobsurat si galatfahmee har ek ko ho sakti hai suman
धन्यवाद अनिल कान्त जी ॥
ReplyDeleteमनोज जी ब्लॉग का "अनुसरण" करने के लिए धन्यवाद ..यदि आपकी पत्नी भी आप के बारे में कुछ ऐसा सोचती हैं तो निश्चित रूप से आप भी उनके दोस्त हैं ..जहाँ बात है गलतफहमी की तो यदि गलत्फम्ही होती तो यूँ साथ चलते चलते हम दोनों यहाँ तक न आ पाए होते ,हर एक के बारे में तो नहीं कह सकती पर ख़ुद के बारे में जानती हूँ कि मैं गलतफहमी कि शिकार नही हूँ ..क्या अपनी पत्नी कि भावनाओं को भी आप ग़लतफ़हमी ही समझते हैं ?
vakai main aap kushnaseeb hain
ReplyDeletetouch wood ! aaj sach me aapke "neeraj ji "ko aapka ye surprise bahut achha lagega . aapki unpar ki gai kavita vaakai bahut sundar hai . achhi lagi.
ReplyDeleteइसे ही कहते हैं रिश्तों की प्रगाढता। हार्दिक शुभकमानाएँ।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
aapki kahani bilkul mujhse milti -julti hai ..par ek baat alag hai unhone kabhi mujhse nhi kaha mere liye likho :-(
ReplyDelete"आज तुम्हारे लिए कलम उठाई है
ReplyDeleteक्या वर्णन से न्याय हो पायेगा ,यह कठिनाई भी है"
आज आपने कमाल कर दिया..
पूरी कविता बहुत सुन्दर है.
आपकी भावनाओं के जैसी,
और आप दोनों के रिश्ते जैसे.
ईश्वर सदैव इसे ऐसा ही रखे.
यही मेरी कामना है.
समझ नहीं आता कौन ज्यादा भाग्यशाली है.
मैं तो कहता हूँ आप दोनों ही भाग्यवान हैं,
एक दूसरे के पूरक और प्रेरक हैं.
कोटि कोटि शुभकामनाएं.
~जयंत
जीवन में खुशियों का यह क्रम बना रहे। शुभकामना।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Priyanka Ji,
ReplyDeleteMaybe this is not the right place, but I wanted you to read a poem, small tribute from the bottom of my heart, to our beloved faujis.
Please read it when you have time.
You can find it at :
http://jayantchaudhary.blogspot.com/2009/03/blog-post_8645.html
Hopefully this small tribute from my soul will go out to our 'veer' soldiers through you.
Jay Hind,
~Jayant
hriday ko sparsh karti aapki yeh umda post badhai ki patra hai
ReplyDelete.............bahut achha likha..............
अच्छा है कि गृस्थी की गाड़ी के दोनों पहिए बराबर हैं और समतल ज़मीन पर चल रहे हैं। वरना ऐसी गृहस्थियों के बारे में कम देखा, सुना और पढ़ा है मैंने। शादी बचा फिर रहा हूं, हनुमान बचाए।
ReplyDeleteआपको बधाई की जगह नीरज जी को देना बेहतर होगा न.... तो ढेर सारी बधाइयां !!
ReplyDeletejayant ji very glad that u invited me to read that poem ..its indeed very touching !!!
ReplyDeletethanks to all of you for reading this and giving your reactions..this one is very special and close to my heart and so are your comments..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना है। हां, अगर नीरज जी की एक तस्वीर साथ होती तो और अच्छा लगता। खैर बधाई। बहुत अच्छा लिखती है आप।
ReplyDeleteI infact dont have words to express my feeling on this poetry..But ya i can only say that ur words gave me a strength to stand and walk on my way and to manage my new life..
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