परसों एक सह अध्यापिका से शहीद भगत सिंह के विषय में बात हो रही थी और उनकी एक टिपण्णी से मैं विचलित हो उठी । उनके अनुसार भगत सिंह एक "टेररिस्ट" यानि आतंकवादी थे और इसलिए अहिंसावादी हमारे देश मेंउनकी बात करना अनुचित है। उन्हें अपनी बात कहने की आज़ादी थी सो उन्होंने कह दी पर मुझे नही पता की मैं ज्यादा दुखी किस बात से हूँ - इस से कि उन्होंने भगत सिंह जैसे महान शहीद को आतंवादी कहा ,इस से कि ऐसे बहुत से लोग हैं जो ऐसा ही सोचते हैं या फिर इस बात से कि वह एक अध्यापिका हैं जो आज के युवा वर्ग कि सोच निर्धारित करने में एक अहम् भूमिका रखती हैं या फिर इस बात से कि जैसे आज तक भगत सिंह के व्यक्तित्व को इस देश कि जनता से अनजान रखा गया क्या आगे भी ऐसे ही होगा , क्या इतिहास ही की तरह इस देश की सरकारें और उन सरकारों को चुनने वाले लोग हमेशा इस वीर के बारे में बात करने से जिझकेंगे?
बहुत आसानी से उन्होंने आतंकवादी शब्द का प्रयोग एक देशभक्त के लिए कर दिया और यह तक याद न रखा कि आज इस शब्द के मायने क्या हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसा करने वाली वह पहली हैं ..पहले भी क्रांतिकारियों को आज़ादी मिलने के बाद भी भी आतंकवादी कह कर संबोधित किया जाता रहा है । कुछ साल पहले एक स्टेट बोर्ड कि हिन्दी की पुस्तक में "आज़ाद" को आतंकवादी कि संज्ञा दी गई थी । कहने वालों का तर्क यह है कि आतंकवादी वह होता है जो राज्य की शासन प्रणाली के विरूद्व होता है और अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लेता है और यूँ देखें तो भगत सिंह और उनकी नीति इसी परिभाषा पर आधारित थी। मेरा मतभेद निम्न मुद्दों पर है -
१) आज हम आतंकवाद को जैसे समझते हैं उसको ध्यान में रखते हुए क्या लोगो द्वारा चुनी गई प्रजातान्त्रिक सरकार और देश को गुलाम रखने वाली एक विदेशी हुकूमत की "स्टेट" के नाम पर तुलना की जा सकती है। आज आतंकवादी जिस "स्टेट" के विरुद्ध हैं और भगतसिंह जिस "स्टेट" के विरूद्व थे क्या उसमे कोई फर्क नहीं ?
२) आज़ादी की जो परिभाषा आज आतंकवादियों ने तय की हुई है क्या उसकी तुलना भगतसिंह के आजाद भारत के सपने से की जा सकती है ?
३) जेहाद के नाम पर आतंकवादी संगठन जिस तरह मासूम युवकों को बहका कर उन्हें अपना माध्यम बना रहे हैं क्या उसकी तुलना भगतसिंह के "इंक़लाब जिंदाबाद" के नारे से की जा सकती है जो अनेको अनेक युवकों का आज़ादी के संग्राम में युध्नाद बना ।
४) क्या हिजबुल मुजाहीदीन की तुलना "हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिईशन" से की जा सकती है ?
५) जिस तरह आज मासूमों को कभी ट्रेन में तो कभी बस में बम रख कर मारा जा रहा है क्या उसकी तुलना "सौन्डर्स" को उसके सही अंजाम तक पहुचाने से की जा सकती है ?
यह सब तुलनाएं नहीं की जा सकती और जो यह तुलनाएं कर सकता है उसके भारतीय होने पर मेरा पूरा संदेह है । यदि यह तुलनाएं नहीं की जा सकती तो फिर आज के सन्दर्भ में भगतसिंह या उन जैसे अन्य क्रांतिकारियों को आतंकवादी कहना क्या ठीक है ?जिस आतंकवाद की आग में आज सारा विश्व जल रहा है उसी आतंकवाद का प्रयोग "विश्व भाईचारे " की बात करने वाले भगतसिंह के चरित्र वर्णन के लिए करना क्या ठीक है ?
एक राष्ट्र नायक के लिए ऐसे संदेह और संज्ञाएँ इसलिए हैं क्योंकि यह देश उनकी बात नहीं करता। भगतसिंह देश के पहले कम्युनिस्ट थे और समाज के हर वर्ग के लिए खासकर मजदुर और किसान वर्ग के लिए उन्होंने हक की बात की थी । उन्ही के अनुसार क्रांति केवल बम या पिस्तौल की भाषा बोलना नहीं बल्कि अन्याय पर आधारित मौजूदा कार्य एवं शासन व्यवस्था को बदलना है । वह मानते थे कि राजनैतिक आज़ादी आर्थिक आज़ादी के बिना अधूरी है । यह बहुत शर्म कि बात है कि आज कल के तथाकथित कम्युनिस्ट उस कम्युनिस्ट की बात नहीं करते जिसकी नीतियों में राजनीती या निहित स्वार्थ कि मिलावट नहीं थी ।
भगतसिंह धर्मं और राजनीती के मिश्रण को देश के लिए हानिकारक मानते थे । उनका मानना था कि धर्मं के नाम पर बँट कर हम अंग्रेज़ी हुकूमत को मजबूत कर रहे हैं । यही कारण है कि "सर्व धर्मं सम्भाव" के नाम पर कांग्रेस द्वारा मंत्रो और आयतों का एक साथ उच्चार कराने ,"राज करेगा खालसा" जैसे उदघोश के वह पुरजोर विरोधी थे क्योंकि उनके अनुसार जब तक धार्मिक चिन्हों या प्रतीकों का प्रयोग होता रहेगा तब तक एक आम आदमी ख़ुद को सबसे पहले एक हिन्दुस्तानी कभी न समझ पायेगा। शर्म की बात है कि वह जो सच्चा सेकुलर था और जिसकी धर्मनिरपेक्षता वोट पाने या तुष्टिकरण के लिए नहीं थी ,उस भगतसिंह की बात आज कल की तथाकथित "सेकुलर", "धर्मंनिरपेक्ष".."साम्प्रदायिकता की दुश्मन" पार्टियाँ भी नहीं करती ।
भगतसिंह जातिवाद के सबसे बड़े निंदक थे । यही कारण है कि अपने आखिरी दिनों में उन्होंने एक सफाई करने वाली महिला के हाथ की बनी रोटी खाने कि इच्छा जाहिर कि थी और उस महिला को अपनी माँ के समान आदर देते हुए उस रोटी को "बेबे की रोटी" कहा था। जातिवाद पर राजनेताओं की दो मुहि नीति की उन्होंने हमेशा कड़े शब्दों में निंदा की। मदन मोहन मालवीय जिन्होंने एक सभा में एक सफाई कार्मिक के हाथों माला पहनने के बाद कपडों समेत स्नान कर लिया भगतसिंह की आलोचना से नहीं बच पाए थे। महात्मा गाँधी आजीवन किसी हरिजन की कुटिया की जगह संभ्रांत व्यापारिक घरानों के घरों में रहे और वर्ण व्यवस्था की भी किसी न किसी रूप में वकालत की। आज इन सब को याद किया जाता है पर शर्म और दुःख की बात है कि "दलित","हरिजन" आदि शब्दों पर वोट मांगने वाली पार्टियां जातिवाद के इस सबसे बड़े आलोचक की बात नहीं करती।
भगतसिंह क्रांति को एक बड़ा हथियार मानते थे और उनका मानना था कि केवल बातें करने से काम नहीं चलता। देश के हित में यदि खून भी बहाना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिए । राष्ट्रीय सम्मान उनके लिए अमूल्य था और उसे पाने और सुरक्षित रखने के लिए प्राणों कि आहुति देना वह बड़ी बात नहीं मानते थे। दुःख कि बात है कि "आर पर कि लडाई " की बात करने वाली पार्टियां , आतंकवादियों को मुंह तोड़ जवाब देने वाली पार्टियां भी भगतसिंह की बात नहीं करती ।
भगतसिंह की अध्ययन में गहन रूचि थी और इसीलिए वह वैज्ञानिक और दार्शनिक तर्क वितर्कों के हिमायती थे। लेनिन,मार्क्स, फ्रांस और रूस की क्रांति के विस्तृत अध्ययन के कारण ही मानवाधिकार,राजनैतिक अधिकारों के वह हिमायती थे। उनकी यही सोच थी जिसके चलते उन्होंने जेल में भारतीय कैदियों के साथ बुरे बर्ताव के विरोध में आन्दोलन किया था और अन्न -जल तब तक त्याग दिया था जब तक की कैदियों की मांगे मान नहीं ली गई थीं तो फिर क्यों आज महाज्ञाता बुद्धिजीवी मानवाधिकारों के नाम पर कसब जैसे आतंकवादियों की तो बात करते हैं पर उस भगतसिंह की बात नहीं करते जो इन अधिकारों के लिए बंदी होते हुए भी अंग्रेजों से भिड गया था और अपनी उम्र के दुसरे दशक में ही उन लोगों से ज्यादा ज्ञानी था जो सारी उम्र पुस्तकों में निकल देते हैं ।
क्यों नहीं हम भगत सिंह की बात करते ? हम यह बात इसलिए नहीं करते क्योंकि हमारा इतिहास उनकी बात नहीं करता और इतिहास इसलिए बात नहीं करता क्योंकि उसे या तो अंग्रेजों ने लिखा है या इस देश की कुछ राजनैतिक पार्टियों ने - अपने जीवन में भगतसिंह अंग्रेज़ी और ऐसी पार्टियों की नीतिओं के पुरजोर विरोधी रहे और इसलिए यह बहुत अचंभे की बात नही है कि जहाँ इसी इतिहास ने हमें बहुत से "माता" "पिता" तो दिए पर भारत माँ का एक सपूत इतिहास के इन्ही पन्नों में दबा दिया गया। "डोमिनियन स्टेटस " की बात करने वाले लोग देशभक्त हो गए, आज़ादी के नायक होगए और पूर्ण आज़ादी की लडाई लड़ने वाले "कुछ राह भटके नौजवान" बन कर रह गए। अहिंसा इस देश का मूलमंत्र बन गई पर गीत गाते हुए फांसी पर झूल जाने वाले कुछ सरफिरे हो गए। वह जो राजनैतिक रोटियाँ सेकते रहे , ब्रिटिश हुकूमत के दरबारी बन कर रहे महिमा मंडित हो गए पर वह जो निस्वार्थ विदेशी हुकूमत से टक्कर लेते रहे आज़ादी की राह में रूकावट हो गए। जिन्होंने धर्मं के नाम पर देश के टुकड़े करा दिए उनकी मूर्तियाँ लगी हैं हर चौराहे पर और वह जिसने धर्मं ताक पर रख कर उद्देश्य की सफलता के लिए केश तक कटवा दिए ,धर्मं की बात छोड़ दी उसे याद दिलाती हुई एक तख्ती भी मुश्किल से दिखाई देती है।
क्यों नहीं हम बात करते भगतसिंह की ? कैसे २ अक्तूबर और १४ नवम्बर हमें याद रह जाते हैं पर २७ सितम्बर को कोई मोल नही? २१ मई ,३० जनवरी को कैसे हम शोक मना लेते हैं पर २३ मार्च हर साल आने वाली एक तारीख भर है । कैसे इस देश में नेता ,अभिनेता "भारत रत्ना"पा जाते हैं पर भगतसिंह,राजगुरु ,आज़ाद का योगदान किसी को भी इस सम्मान के लायक नहीं लगता ।
यदि इतने ही मामूली थे भगतसिंह तो २० वर्ष के भगतसिंह ५८ वर्ष के गाँधी की लोकप्रियता को टक्कर कैसे दे रहे थे ? गाँधी क्यों फांसी टालने के लिए दबाव बनाने की जगह अँगरेज़ गृह सचिव को भगतसिंह की फांसी के बाद जनसाधारण की भावनाओं को सुनियोजित तरीके से सँभालने की सलाह दे रहे थे ? और क्यों गाँधी के राजनैतिक जीवन में पहली बार ,भगतसिंह के शहादत के एक हफ्ते बाद १९३१ के कराची अधिवेशन में उन्हें काले झंडे विरोधस्वरूप दिखाए गए थे और रोष तब ताक शांत नहीं हुआ था जब तक गाँधी ने भगतसिंह की शहादत पर अपने भाव और शोक व्यक्त नहीं किया था।
पर कैसे उम्मीद की जा सकती है कि यह देश भगत सिंह के बारे में बात करेगा क्योंकि उन्होंने कहा था कि क्रांति के बिना मिली आज़ादी का कोई मोल नहीं रहेगा ,धर्मं जाती के नाम पर मिली आज़ादी को कोई मोल नहीं होगा और आज हर वह बात जिसके वह निंदक थे आज हमारे देश के चरित्र का हिस्सा बन चुकी है - शोषण , जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता ...भगतसिंह ने कहा था एक नए देश का प्रारूप तभी बन सकता है जब आज़ादी क्रांति से मिले और जिस व्यवस्था से हम लड़ रहे हैं वह जड़ से ख़तम कर दी जाए जैसे फ्रांस ,रूस ,अमरीका में हुआ । यदि आज़ादी समझौते पर मिली तो हम इस विदेश हुकूमत का बोझ हमेशा ढोयेंगे और आम आदमी हमेशा यूँ ही गुलाम रहेगा बस शोषण करने वाले उसके शासकों की चमड़ी का रंग बदल जाएगा । क्यों एक ऐसा देश जिसके बन जाने का उन्हें हमेशा डर था उनकी बात करेगा ? क्यों ऐसे शासक जिनको राजनैतिक स्वार्थ की राह में जिस भगतसिंह की नीति अवरोध लगती हो उसी भगतसिंह की बात करेंगे ?
मैं दुखी हो जाती हूँ कि कोई सैनिकों कि बात नहीं करता पर जब यहाँ कोई शहीद भगत सिंह की बात नहीं करता तो एक सैनिक की क्या करेगा। जब हमने उनके बलिदान को भुला दिया ,उन्हें आतंकवादी कह उस बलिदान का तिरस्कार कर दिया तो एक सैनिक उम्मीद ही क्या कर सकता है ।
आपकी भावनाओं को नमन....काश सब लोग यह देख सोच पाते....
ReplyDeleteमैं शत प्रतिशत सहमत हूँ आपसे.....
इस विचारोत्तेजक आलेख हेतु आपका बहुत बहुत आभार.
मॉडलों, अभिनेताओं और क्रिकेटरों से फुर्सत मिले तब तो।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सही बात लिखी है। भगतसिंह सच्चे देशभक्त ही नहीं थे, वे सच्चे मानवतावादी भी थे जो एक देश द्वारा दूसरे देश और एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के शोषण की समाप्ति चाहते थे। उन की कोई भी गतिविधि आतंकवाद नहीं थी। गाँव में कोई व्यक्ति अपने पिता के हत्यारे को गोली से उड़ा दे तो उसे अधिक से अधिक कानूनी रूप से अपराधी तो कहा जा सकता है, लेकिन आतंकवादी कदापि नहीं। जिस ने भगत सिंह को आतंकवादी बताया है वह या तो नासमझ है या फिर शोषण को बनाए रखने की पक्षधऱ।
ReplyDeleteमैं दुखी हो जाती हूँ कि कोई सैनिकों कि बात नहीं करता पर जब यहाँ कोई शहीद भगत सिंह की बात नहीं करता तो एक सैनिक की क्या करेगा।
ReplyDeleteabhibhut hu main aapki bat se. Bilkul sahi kaha hai aapne.
आप का आलेख पढ कर अच्छा लगा।वास्तव मे इतिहास की बहुत सी सच्चाईयां कभी देश वासीयो के सामने आई ही नही। कारण साफ है यदि उन शहीद क्रांतीकारीयों की कुर्बानीयों की गाथाएं अहिसा वादी देश भगतों से ज्यादा हावी हो गई तो क्या होगा!!आप बात को समझ सकती हैं।
ReplyDeleteआप अपनी इस सह अध्यापिका से एक सवाल पुछना कि कोई गुंडा जब इन की बेटी या बेटे को ले जाये तो यह क्या दुसरी बेटी भी उसे भेज देगी आहिंसा का साथ दे कर,
ReplyDeleteया फ़िर मोका मिलने पर उस दरिंदे को मारेगी, सजा दिलवायेगी. यह वो लोग है जो हमारे देश मै एक कलंक है
यह क्या जाने आजादी किसे कहते है,
आप ने बहुत सुंदर लिखा
एक और बेहतरीन, मुद्दे सहित और विस्तारपूर्वक लिखा गया उम्दा लेख… असल में आज के राजनैतिक दल और भ्रष्ट लोग "भगतसिंह" के नाम के विराट स्वरूप और उसकी लोकप्रियता से डरते हैं…। रही बात कुछ खास तारीखों को ही याद रखने, और एक ही परिवार के नामों पर सड़कों/पुलों/बाँधों/कालोनियों की… तो इस देश में "भांड-चमचों" की कभी भी कमी नहीं रही, जिनका साथ देने के लिये या तो बिका हुआ/या परले दर्जे का मूर्ख मीडिया भी रहा, जो कभी "देश-राष्ट्र-राष्ट्राभिमान" को ठीक से देख नहीं सकता।
ReplyDeleteइन अध्यापिका महोदया जैसे वामपंथियों की बातें सुनकर दक्षिनपंथी हो जाने का मन करता है
ReplyDeleteप्रियंका बड़ा ही शाश्क्त विषय उठा दिया आपने...हम कितने कृतघ्न हो सकते हैं..मुझे तो नहीं लगता की इसकी सीमा कोई तय की जानी चाहिए...क्यूंकि रोज कोई न कोई नयी सीमा बन जाती है..uदरअसल गलती तो उन्ही दिनों में हुई ;थी जब गाँधी जी भी न जाने किन कारणों से उन्हें फांसी पर चढ़ जाने दिया था..आज शायद उसीका परिणाम है की भगत...सुखदेव..आजाद जैसे भुला दिए गए हैं और याद भी किया जाता है तो इस तरह....अपने पूछा नहीं की ..कैसे आतंकवादी थे..?तालिबानी या ......
ReplyDeleteho sake toh aapki sah adhyapika ka DNA test karaao, kharch main vahan karoonga kyonki mujhe poora bharosa hai ki kisi bhaarteeya ki nahin balki firangi ki hi santaan niklegi
ReplyDeleteHINDOSTAN KO BAS YAHI FARIYAD RAH GAYI
ANGREJ TOH CHLE GAYE, AULAAD RAH GAYI
aapki post, aapki soch aur aapki raashtrabhakti ko naman !
aisaa hi dhaardaar likhte rahiye...all the best !
23 saal ki umra me to unhe fansi hi ho gai aur is ke pahale hi unhone vo kar diya jo log umra bhar nahi kar paate.
ReplyDeleteunka likha sahitya angrejo dwara zabta kar liya gaya....anyatha usi umra me unhone jo bhi likha tha vo yugo tak pathniya aur prerak hota.
kya pata hamri agali peedhi in namo ko kis tarah legi
आपकी आपत्ति और विचारों से पूरी तरह सहमत हूं।
ReplyDeleteउम्दा कटाक्ष
ReplyDeleteप्रियंका जी ,
ReplyDeleteआपकी सराहना मुझे संयम देगी ....!!
भगत सिंह पर काफी लम्बी पोस्ट लिखी है आपने ...इसे टुकडों में डालतीं तो शायद बेहतर होता ...नीचे की पोस्ट एक सैनिक पर है ....इस से आपका देश प्रेम जाहिर होता है ....आपको नमन.....!!
भगत सिंह के बारे कई जानकारियाँ मिली आपके माध्यम से ....shukariyaa .
विगत कुछेक महीनों से जब से इस हिंदी ब्लौग-जगत से जुड़ा हूँ, तो लगने लगा है कि समस्त संवेदनायें जैसे बस यहीं तक सिमट कर कर रह गयीं हैं...बाहर की दुनिया में तो ऐसा सोचता-बोलता कोई नजर ही नहीं आता।
ReplyDeleteफिर एक सोच अलग से उठती है कि ऐसी तमाम संवेदनायें या आक्रोश महज लिखने-कहने-सुनने तक ही तो सीमित नहीं?
वैसे भी "आतंकवाद" और ’उग्रवाद" दो अलग-अलग शब्द हैं। terrorists और insurgents...आपके पोस्ट की ये पंक्ति "कहने वालों का तर्क यह है कि आतंकवादी वह होता है जो राज्य की शासन प्रणाली के विरूद्व होता है और अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लेता है" ..तो ऐसा कहने वाले गलत कहते हैं। आतंकवाद का मुद्दा सिर्फ और सिर्फ आतंक फैलाना है। that is why in valley, its no longer called "counterinsurgency"...it is called "counter terrorism" |
कोई निरा मुर्ख ही भगत सिंह को आतंकवादी कहेगा...तरस खाने लायक निरा मुर्ख!!!
प्रियंका जी बहुत ही सही और सटीक विषय उठाया है आप ने सैनिको और शहीदों के सम्मान के लिए एक बार और आभार
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
९९७१९६९०८४
AWESOme n SO WELL PUT!!
ReplyDeleteKitni acchi tarah se aapne yeh kaha...awesome u teach...Rasheed
ReplyDeleteभगत सिंह जी और उनके विचार.... चले गए..
ReplyDeleteप्रियंका जी...
कहाँ राख के ढेर में चिंगारी तलाश रहीं हैं??
आप भी क्या अकाल में बादल खोज रहीं हैं??
बहुत दुःख है...
अब क्या कहूँ...
मैंने अपने कुछ साथियों के साथ.. डल्लास में दीवाली मेले में, भगत सिंह जी और साथियों के जीवन पर एक नाटक प्रस्तुत (लिखा और डायरेक्ट) क्या था..
बहुत लोगों ने पसंद किया... औत बहुत पसंद किया...
पर अधिकाँश लोगों को कोई मतलब नहीं था...
वो तो चाट खाने और मस्ती में व्यस्त थे...
मैं ये इसलिए नहीं कह रहा की मैंने नाटक प्रस्तुत किया था..
किन्तु इसमें महीनों के मेहनत लगी थी... और अधिकाँश भगत सिंह के बारे में बिलकुल ठंडे थे..
और जबकि उसके पहले के "मैजिक और बॉलीवुड डांस" शो के लिए भारी भीड़ थी..
अफ़सोस!!! किन्तु जिन्होंने देखा और पसंद किया उतने ही बहुत थे.. :))
~जयंत
ab isase jyada dukh ki baat aur kya ho sakti..agar ek padha likha wayqti..bhagat singh jaise mahapurush ko aatankwadi ghosit kare de...to us desk ka bhagwaan hi malik hai..aise logo ke karan hi itihaas dohraya jata hai.
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