Wednesday, June 3, 2009

सुनो पोस्टिंग आर्डर आया है

एक बार फिर नई पोस्टिंग (ट्रान्सफर) का फरमान आ गया है ..माँ हमेशा खीज जाया करती थी जब मैं कहती थी फौजी से ही शादी करुँगी ,मेरे पिता सेना में नहीं जा पायें उसका बड़ा कारन वहीं थीं ..कहती थी जिंदगी भर खाना बदोशों की तरह समान ढोते हुई घूमेगी। आख़िर में होना तो वही है जो विधि को मंज़ूर होता है तो मेरा गठ्जोडा भी एक फौजी के साथ ही जा कर जुड़ गया वह अलग बात है की माँ भी तब काफ़ी उत्साहित थीं । लगभग सात साल बीत चुके हैं और इन सात सालों में अपना समान कमसकम पाँच बार समेट चुकी हूँ ..गृहस्थी शुरू की थी तो पाँच बक्से थे ,हर साल के साथ २-३ जुड़ते गए। कल की चिट्ठी के साथ एक बार फिर बक्से बनाने की कवायद शुरू हो गई है । फौजी परिवारों की एक ख़ास आदत होती,देश में जहाँ जहाँ रहते हैं वहां की ख़ास चीजे समान में जुड़ती जाती हैं साथ ही साथ बक्से भी जुड़ते जाते हैं और सेवानिवृत्ति के बाद घर संग्रालय सा दिख्नने लगता तो तो । सात सालों में कारगिल की बर्फीली ऊँचाइयों से हैदराबाद की निजामी तहजीब सब कुछ सेना और उसकी पोस्टिंग ओर्डेरों की बतौलत देख पायीं हूँ ।



पोस्टिंग के बारे में पता चलते ही पुराने प्रश्नों की एक टेप फिर से चल जाती है .."पैकिंग कब शुरू करनी है ? घर कितने दिनों में मिल जाएगा ? ट्रक को कब रवाना करना है ? ओह्हो फिर से बारिशों में समान भेजना होगा ?" इन सवालों से जूझते हुए युद्घ स्तर पर पैकिंग का काम शुरू होता है .."किस बक्से में क्या रखना है ,समान की लिस्ट बक्से पर लगायी है या नहीं "..."रसोई तो आख़िर में ही समेटेंगे, पर इतने शो पीस कहाँ पर, कैसे अटेंगे "... " इतने कपड़े क्यों खरीदती हो और मेरे कम्पुटर और म्यूजिक सिस्टम को तो तुम छोड़ ही दो" । १५ दिन तक घर कबूतर खाना सा लगता है और हम दोनों का फ्यूज़ बात बात पर उड़ता है। किसी तरह से निपटा कर ट्रक लोड करने का भी दिन आता है। अब नीरज मुझे ट्रक वाले से बात नहीं करने देता ,उसे पता है कि रिस्क है क्योंकि चिंता से भरे मेरे प्रश्नों की बौझार उसे काम करने से मना करने के लिए बाध्य कर सकती है ।



चिंता क्यों न होगी ...दिल टूट जाता है जब चीनी मिटटी की पसंदीदा प्लेट टूटी हुई निकलती हैं ..या फिर कांजीवरम साडियों में भीगने के कारण फुफुन्दी लगी हुई होती है । ज्यादातर छावनियों में जाते ही घर मिलना मुश्किल होता या फिर अस्थायी तौर पर कुछ उपलभ्द करा दिया जाता । महीने दो महीने के बाद जब घर मिलता है एक बार फिर बक्से खोल,तिनका तिनका निकाल उस मकान को घर बनाने का काम शुरू हो जाता है और फिर जैसे ही उन् दीवारों में ख़ुद को और उस शहर की अनजानी गलियों में ख़ुद के रास्तों को खोज लेते हें तो दिल्ली से फिर एक पोस्टिंग का पैगाम आ जाता है ।

12 comments:

  1. बहुत दिनों बाद पोस्टिंग शब्द पढ़कर इधर चला आया, फ़ौजी घर का ब्लाग पढ़ कर अच्छा लगा।

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  2. priyankaa jee..mera pooraa paarivaarik maahaul hee fauj kaa raha hai...apne purane dino kee yaad taajaa kar dee...hamein to apne doston aur school ke bichhadne kaa gam hota tha...badhiyaa likhaa...

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  3. एक तरह का अनुभव होता है ऐसी सेवायों में

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  4. ठीक कहा। मेरा भाई एयर फोर्स में था, भाभी भी ऐसा कहती थीं।

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  5. आहा! पुराने दिनों की याद ताजा कर दी आपने , अब मुझे तो नहीं पर हाँ मेरी भाभी को ये मशक्कत करनी पड़ती है फिलहाल वे अभी कुछ साल बबीना में ही रहेंगी....शुक्र है ! अच्छा लगा पढ़ कर लिखती रहिये । आपकी पोस्ट पढने में बहुत मन लगता है :) वैसे कब तक जाना है ? तब तो पोस्ट कुछ दिनों तक नहीं लिख पाएँगी ....ओह नो :(

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  6. प्रियंका जी,

    आपको और आपके विचारों को जान कर बहुत अच्छा लगा.
    आपके प्रोफाइल में जो लिखा है, पढ़कर आनंद और गर्व हुआ..
    गर्व इसलिए की आपने एक फौजी से शादी से की है..
    और आपने अपने अस्तित्व को भी पृथक रखा..
    सचमुच, आपके ब्लॉग पर आना मेरा सौभाग्य था.

    आप अच्छा लिखतीं हैं, और ऐसे ही लिखते रहियेगा.
    भारत को और मानवता को आप जैसे नारियां चाहिए!!

    मेरे ब्लॉग को "अनुसरण" करने का बहुत बहुत धन्यवाद..
    और आपके प्रोत्साहन और टिपण्णी के लिए दिल से आभारी हूँ.

    जय हिंद,
    ~जयंत

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  7. बदलाव ही ज़िंदगी है। ये सच है कि मशक्कत है, समायोजन की, अजनबी शहर में अपने तलाशने की, अनजाने रास्ते पैरों लगने की। अब तो हर रोज नई सड़क मौहल्ला और कॉलोनियां बन रहीं हैं। प्रधानमंत्री खुद सड़क बन गए हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना। हेहेहेहेहेहे। चलते रहो एक दिन रास्ते खुद पहचानने लगेंगे। अपने असाधारण शौक में थोड़ी दिक्कतें आएं भी तो बेमानी ही लगती हैं। इस बार नया इलेक्ट्रोनिक इक्विपमेंट या गैजेट खरीदें तो उसके सेफ्टी केस का थर्मोकॉल संभालकर रखिए। चीनी की प्लेंटें बचाने के काम आएगा, और कांजीवरम साड़ियां मजबूत पॉलिथीन में अच्छे से सेलो ट्रेप लगाकर पैक करके रखिए।

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  8. इस पोस्ट पर आप सभी की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी..बस यूँ हींअपने जीवन के कुछ हलके फुल्के लम्हे बांटने का प्रयास था..भावना जी कंप्यूटर पैक नहीं हो रहा है ,शायद हफ्ता भर और लिख पाऊं और वैसे भी नीरज का कंप्यूटर प्रेम मुझ से कहीं अधिक है..आखिरी दिन तक भी पैक नहीं होगा !! वैसे आपने मेरी लेखन में इतनी रूचि दिखाई बहुत शुक्रिया ॥
    जयंत जी मेरा लिखा पढने के लिए धन्यवाद ,बहुत अच्छा लगा की आप जैसी सोच के लोग सेना और उस से जुड़े लोगों के लिए इतने संवेदनशील हैं ..जब काफ़ी लोगों की वर्दी के लिए बेरुखी और अनदेखी देखती हूँ तब आप जैसे लोगों का ख्याल ही कुछ शान्ति देता है ..ब्लॉग पर आप के आने का हमेशा इंतज़ार रहेगा ,प्रोत्साहन तो आप दे ही चुके हैं आलोचना से भी कभी न जिझाकियेगा ॥
    मधुकर जी मेरे चेहरे पर एक मंद मुस्कान तैर गई जब देखा आपने मेरी मुश्किलों के लिए सुझाव दिए हैं..मुझ से आप ऐसे जुड़े बहुत अच्छा लगा !!!

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  9. प्रियंका जी,

    पोस्टिंग ऑर्डर सुनकर बहुत कुछ याद आ गया..
    मेरे पिता जी आई.ऍफ़.एस. में थे, तो हम भी पैक करो और चलो वाली जिन्दगी जीते थे.
    उसका अपना मजा था...
    किन्तु माँ के लिए बहुत सारे काम होते थे.
    आप फौजियों के बारे में तो और भी ज्यादा होंगी वो बाते, क्योंकि सारा हिन्दुस्तान आपका स्थान है.

    मेरा ह्रदय की गहराइयों से सलाम आप सबको.

    फौजियों के लिए, फौज, फौज है मौज नहीं...
    और सिविलियंस के लिए, फौज और फौजियों के बिना मौज नहीं...

    आप ही हैं जो देश को सब कुछ देते हैं,
    और बदले में हम कुछ भी नहीं दे पाते हैं..

    बस आज मेरा प्रणाम ही सही.....
    कभी वक़्त आया तो और भी ज्यादा करेंगे.

    ~जयंत

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  10. क्या कहूँ जयंत जी ..दिल को छु गई आप की बात ,नीरज भी यहीं है..उसने भी पढ़ा ,हम दोनों की और से बहुत अभिवादन...कई लोग कहते हैं की इतना हो हल्ला क्यों,सेना अपनी नौकरी ही तो कर रही है वह अलग बात है की कुछ ही लोग उस नौकरी की जटिलता को समझ पाते हैं । ऐसे एक व्यक्ति से आज मेरा भी साक्षत्कार हुआ है ...

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  11. Fauji ki patni ke roop me ek vyakti ko janana bahut achchha laga

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  12. विगत तीन दिनों में पहली बार मुस्कुराया हूँ शायद...पोस्ट की सच्चाई पढ़ कर....अभी-अभी अपनी अर्धांगिनी को लिंक भेजा है इस पोस्ट का, शायद उसे भी कुछ सकून मिले कि और भी हैं उसके दर्द को समझने वाले...

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आप का ब्लॉग पर स्वागत है ..आप की प्रतिक्रियाओं ,प्रोत्साहन और आलोचनाओं का भी सदैव स्वागत है ।

धन्यवाद एवं शुभकामनाओं के साथ

प्रियंका सिंह मान