Wednesday, June 10, 2009

एक सैनिक से साक्षात्कार

कल के लेख ही की एक कड़ी यह कविता है । कविता की शुरुआत एक शेर से करना चाहूंगी जो पापा ने घर पर फ्रेम कर के लगाया था
"उनकी गुरबत पर नहीं है एक भी दीया
जिनके खूं से जलते थे चिराग-ऐ-वतन
जगमगा रहें हैं मकबरे उनके
जो बेचा करते थे शहीदों के कफ़न "


क्यों खड़े हो बर्फीली किसी चोटी
कभी रेगिस्तान की धूल खाते
या घने जंगल के अंधियारे में ?
क्यों आ खड़े हुए हो दंगों में
बाढ़ या भूकंप के गलियारों में ?
पाँच कदम की इस पोस्ट पर
क्यों तुम्हारा दम नहीं घुटता ?
अपने घाव खरोंचों पर क्यों तुम से मरहम नहीं लगता?
क्यों मुट्ठी भर सिक्कों के लिए
अमूल्य अपनी जान को ताक पर रखा है?
क्यों भूल गए
घर का छप्पर है टूटा ,माँ है बीमार
बीवी अकेली है बच्चे को कल तक था तेज़ बुखार
क्यों साल दर साल सामान उठा दर- दर की ख़ाक खाते हो?
कितनी उंगलियाँ हैं तुम पर उठती
अनाचारी ,देश विरोधी हो तुम
तो क्यों सारे देश को अपना घर बताते हो ?
बारूद के ढेर पर खड़े
"बुद्धिजीवियों" की गालियाँ
कभी दुश्मन की गोलियाँ झेलते हुए
क्या थक नहीं जाते हो ?
क्यों नौकरी को नौकरी की तरह नहीं करते ?
क्यों पाँच बजते ही घर न रुख नहीं करते
रविवार क्यों नहीं मनाते
धरने और हड़तालें क्यों नहीं करते ?
तुम्हे छोड़ सब करते हैं
देश रुका है क्या ?
तो तुम अनुशासन, देश धर्म की बातों में क्यों उलझ जाते हो
क्यों देश, देशभक्ति की बातों में दीवाने हुए जाते हो ?
याद रखो अब यह किताबी बातें हैं
आजकल इनका अर्थ नहीं ,कोई इनका मोल नहीं है लगाता
छालों से भरे, गले अपने पैरों को
वर्दी के इन जूतों से कभी निकाल कर देखो
तुम्हे लगता है इनके निशान समय की रेत पर कोई रहने देगा ?
जो थे वही मिटा दिए गए हैं
तो फिर क्यों दिन रात चले जाते हो
किसी के कल के लिए क्यों अपना आज दांव पर लगाते हो ?
क्यों अपने माथे पर सब की तरह
प्रान्त,जाती,धर्म की मोहर नहीं लगाते हो
लगाते तो शायद फायदे में रह जाते
यह मोहरें जब सरकारें बदल देती है
तो शायद तुम भी अपनी बदी बदल पाते
क्यों मिट जाने को तैयार हो ?
शहादत तुम्हारी बस एक मौत बन कर रह जायेगी
सुर्खियाँ तो नेताओं के वादों ,
अभिनेताओं के अंदाज़ के हिस्से ही आएँगी
ज्यादा हुआ तो दो खादीधारी चुनाव को धयान में रखते हुए
तुम्हारे घर हो आयेंगे ,हर न्यूज़ चैनल पर अपना मुह दिखायेंगे
एक मैडल थमा देंगे - मरणोपरांत
उद्घोषक की कुछ पंक्तियों में तुम्हारा असीम साहस सिमट जाएगा
और यूँ देश के कर्णधार अपने हिस्से का काम कर जायेंगे
और तुम ही से दीवाने तुम्हारी विधवा और बच्चे
हर पल से संघर्ष करते हुए
उस मैडल के गर्व और तुम्हारी तस्वीर के साथ
अपना जीवन जीते जायेंगे

इतने क्यों सुन कर भी
उसका चेहरा बेफिक्री से खिल जाता है
यूँ लगता है यह बहस बेकार गई
और मेरे इन सवालों का जवाब
वह सैनिक कुछ यूँ दे जाता है
माँ से जो प्यार होता है बेटा उसका मोल नहीं लगाता
कर्तव्य की राह में कुछ मिलने की आस करूँ
तो कर्तव्य न रह कर वह व्यापार है हो जाता
दुःख होता है कभी कभी
जब नीयत पर मेरी सवाल उठ जाते हैं
कुछ साथी इन बाँहों में जब दम हैं तोड़ जाते
क्या करूँ जज़्बात तो फौलादी हैं पर सीने में दिल भी है धड़कता
निश्चय है मेरा अडीग
यूँ ही कुछ बातों और गोलियों से नहीं है हिल जाता
इसलिए हर दिन हर पल नए कुछ प्रण हूँ मैं कर जाता
नौकरी ही होती तो कुछ और भी कर लेता
यह वर्दी मेरा धर्म है
इसकी आन, देश की शान में कुछ भी कर जाऊँ
इस माटी से बना हूँ
सौभाग्य यदि इसी मिटटी से ही मिल जाऊँ
में वीर तभी कहाऊ
जब देश के काम आऊं

24 comments:

  1. आप ये बताइए कि ये सैनिक आपका कोई है या एक आम सैनिक है जो कोई हो गया है

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  2. I salute the saviors of India . The so called 'intellectuals' who question their sacrifice are demons in human form and need to be shown their right place . Thnx for sharing ur emotions with us.

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  3. aapke shabdon me deshpremm ki aag hai ......is aag ko main salaam karta hoon
    JAIHIND

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  4. क्या कहूँ प्रियंका जी..घर या कहूँ की पूरा खानदान ही फौजियों का रहा है..फौजियों का जीवन..उनकी पत्नियों का जीवन और उनके बच्चों का जीवन..कैसा होता है..वर्णन नहीं किया जा सकता..आपने कर दिया..काश ये पोस्ट हर मानवाधिकारवादी..जिन्हें हमेशा ही आंतंकवादियों के मानवाधिकार की चिंता रहती है...को पढ़वाया जा सकता..चलिए इसी बहाने बहुत सी बातें याद आ रही हैं....कुछ छूते न इसलिए आका अनुसरण करना शुरू कर दिया है...

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  5. बसंत जी

    सैनिक कभी आम नहीं होता और इसी "आम" शब्द से मुझे शिकायत है

    सैनिक "कोई" नहीं होता

    न ही हर "कोई " सैनिक हो सकता है

    मेरे लिए तो वर्दी में खड़ा हर सैनिक ख़ास है

    और इसलिए यह रचना भी देश के हर एक सैनिक को समर्पित है

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  6. sainiko ke liye yah bhaw .....har ek bharat wasi ka bhaw yahi hota hai........achchhi rachna ke liye badhaaee

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  7. देशभक्ति के साथ साथ विद्रूपताओं पर चोट करती रचना। ऐसे वीर जवानों के लिए अर्पित है ये पंक्तियाँ-

    नमन मेरा है वीरों को, चमन को भी नमन मेरा।
    सभी प्रहरी जो सीमा पर, है उनको भी नमन मेरा।
    नहीं लगते हैं क्यों मेले शहीदों की चिताओं पर,
    सुमन श्रद्धा के हैं अर्पण, उन्हें शत शत नमन मेरा।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  8. आपकी ये रचना दुधारी तलवार सी चोट करती है। सैनिकों से हमारी अपेक्षाएँ और हमारा खुद की करनी पर आपका व्यंग्य दिल को छू गया।

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  9. आधुनिक जीवन की विसंगति को आपने सीधे, सरल शब्दों में प्रभावशाली तरीके से काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है । आपकी कविता का कथ्य, शिल्प, भाव और विचार सभी प्रभावित करते हैं। सूक्ष्म संवेदना को आपने बडी बारीकी से रेखांकित किया है । बधाई ।-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  10. प्रियंका जी,

    आप हमेशा की तरह दिल को छू लेने वाली बातें लिखतीं हैं.
    और देखिये कितने दिलों को छू गयी यह बातें..
    आपके "अनुसरनकर्ता" कितने बढ़ गए सिर्फ २-३ दिनों में...
    यह आपके सुन्दर तरीके के लेखन और सोच का प्रत्यख प्रमाण है.
    मेरा सौभाग्य की मैं चतुर्थ (पहले पांच) में से एक था. :)
    तो मैं भी 'पंच्च प्यारा' हुआ ना!! :))))

    आपकी जय हो.

    ~जयंत

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  11. बुद्धीजीविओं की गालियाँ से आपका क्या तात्पर्य है? क्यों न हम उनकी निन्दा करें जिनकी वज़ह से युद्ध होते हैं..

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  12. शरद जी आप के पास कहने की आज़ादी है ..पर शायद आप भूल रहें की जिन युद्धोंकी आप आलोचना कर रहें हैं उनमे आप जैसे सज्जनों ने शायद कुछ नहीं खोया है ...खोता अगर कोई है तो एक सैनिक अपने प्राणों को और उसका परिवार आजीवन उसकी उपस्थिति को। आप यह भी भूल रहें की जब आप सरीखे पत्रकार रणक्षेत्र से दूर बैठे सेना की कार्यकुशलता पर लेख लिख रहें होते हैं या चाय की चुस्कियों पर चर्चा कर रहे होते हैं तो कहीं कोई सैनिक अपना सब कुछ ताव पर रख कर इस देश की मिटटी की रक्षा कर रहा होता है । सेना नहीं होती या उसके लड़े युद्घ न होते तो आज यह देश भी न होता । शायद आप भूल गएँ हैं ६२,६५,७१ और कारगिल की लडाई को ..सेना यदि तब न होती ..मेजर शैतान सिंह , कैप्टेन विक्रम बत्रा और अनेक वह सैनिक जिनके नाम मैं यहाँ नहीं लिख सकती ने यदि आप के जैसे सेना के आलोचकों के लिए अपने प्राणों की आहुति न दी होती तो या तो आप आज तिब्बत के लोगों की तरह अपने हक़ की लडाई लड़ रहे होते या फिर किसी तालिबानी हुकूमत का हिस्सा होते । यूँ आलोचना की तीर साधना देश पर मर जाने या देश के लिए मार जाने की तुलना में बहुत आसान होता । और शायद यह बात आपको कड़वी लगे पर सामान्यतः हम उन बातों की निंदा ज्यादा करते हैं जिन्हें करना हमारे बूते से बाहर होता है ।

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  13. फौजी की लडाई उसके मरने के बाद भी चलती है....पेंशन के दफ्तरों से ....पेट्रोल पम्पों के वादों से .....राशन की दुकानों से .... .स्कूल की फीसों से ,..बुढे माँ बाप के चश्मों से....

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  14. कल गौतम राजरिशी जी के तीन साथी शहीद हो गये। आप कहती हैं

    ज्यादा हुआ तो दो खादीधारी चुनाव को धयान में रखते हुए
    तुम्हारे घर हो आयेंगे ,हर न्यूज़ चैनल पर अपना मुह दिखायेंगे

    मगर देखिये ना कहीं तो नही आ रही उस २५ साल के मेजर के बारे में खबर..! क्या वो ऐसी ही खामोशी की मौत मरना चाह रहा था। गौतम जी बता रहे थे कि १३ गोलियाँ झेल गया वो..क्या बस इसीलिये कि हम जान भी ना पायें उस की मौत...! हम चैन से बैये हैं क्योंकि कोई बेचैन रातें बिताता है वहाँ....!

    कम से कम मेरा सैल्यूट है उन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि...!

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  15. कंचन जी आप की भावनाओं में शामिल हूँ और शहीदों को न मिलने वाले सम्मान से आप ही की समान आहत हूँ ..इस विषय पर मेरी वेदना ही व्यंग्य बन कर कविता के पहले भाग में बाहर आई है। दोस्त खोएं हैं मैंने और उस शहादत की अनदेखी होते हुए भी देखा है ..दुःख होता है की जिनके कारण देश और देशवासी सुरक्षित हैं उन्हें याद करना तो दूर कुछ लोग कहते हैं कि सेना देश के ख़िलाफ़ है,तो कुछ कहते हैं की सेना की निंदा क्यों न हो वह युद्घ करवाती है (पिछली ब्लॉग पोस्ट और टिप्पणियां देखें ) गोली खा उन्हें उतना दर्द न होता होगा जितना ऐसी बातें पढ़ कर होता होगा...

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  16. bahut hi samvedansheel kavita , sach jo khota hai vahi samjhta hai, aur aasha hai ki aap "bhootpoorv sainiko ki samasyaon" par bhi bhavishya me prakaash daalengi " ek rank - rk pension" par aapka vichaar jan na chahungi . likhti rahiye.:)

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  17. बहुत बेहतरीन और बढिया रचना लिखी है।बहुत बहुत बधाई।

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  18. जाने कैसे वंचित रहा अब तक इस अद्‍भुत ब्लौग से...

    i salute you, ma'm!

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  19. बहुत ही दर्द नाक है इतना पछपात कुछ नहीं मिलता है हमरे देश के शहीदों को और सैनिको को , कभी देखा है किसी सैनिक को रेलिया या हड़ताल करते हुए जो नहीं मांगेगा क्या उसे मिलेगा नहीं मेरे कई मित्र सेना मैं है उनसे वार्ता लाब होता रहता है अफगान युद्घ के समय बार्डर पर तैनात मेरे एक मित्र ने मुझे एक जोशीला पत्र भेजा और मुझसे अनुरोध किया मैं इसे कविता का रूप दूँ सो मैं आप को उस सैनिक की भावना से अबगत करा चाहता हूँ

    अफगानी ईराकी जीत के मत हो खुश ,
    ये कायर अंग्रेजी टोनी बुश

    पामर ने पामर को मारा

    पामर पामर से हारा



    गर हिम्मत थी सम्मुख लड़ते
    जंगे मैदा मे सम से भिड़ते ,
    चालाकी शेरो का गुड़. नहीं
    शियारो की थाती है ,
    सिंहों को तो केवल
    जंगे मैदा ही भाती है ,
    जंगे मैदा से जो हटता बो मा का पुत्र हरामी है ,
    मा पे सर काट काट जो होम करे बो हम ही हिन्दू नामी है
    तेरी मा का सर छिन्न भिन्न तू हँसता है ,
    निज मा का विधबा पन भी तुझको जचता है ,
    शर्म शर्म तुझपे तेरा हो गया नाश क्यो नही .
    लाखो लानत तुझपे तेरी रुक गई सांस क्यो नही ,
    यह हम वीरो की दम है जो पय पान सिंहनी का करते
    आरी आँखे उठी नही कि अंगारों से उनको भरते
    हम मूछ धर्म पर मरने बाले मा का सौदा कभी न करते ,
    अपनी तो अपनी हम दुसरो कि मा का भी आदर करते ,
    गर कुद्रस्ति गई मा दामन पे
    हम आग लगा देंगे तेरे घर मे
    सर काट काट रण पाटेंगे
    अमरीका को हम बाटेंगे
    हे तुच्छ जीव हे तुच्छ प्राण
    कर लो अपना तुम समाधान
    दुश्मन के लिए बनेगे हम लव कुश
    ये कायर अंग्रेजी टोनी बुश

    सादर
    प्रवीण शुक्ल
    9971969084

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  20. saubhagya mera main bhi ek lt ki maa hun,aapki bhawnayen dil ko chhu gayin......

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  21. बहुत ही ज्यादा ह्रदयबेध लिखा है आपने...
    यही तो सच है,
    गौतम जी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर आया...
    मीत

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  22. आज पहले बार आपको पढने का शौभाग्य मिला. फ़ौजी होने का मतलब क्या होता है? हमसे अच्छी तरह कौन जानएगा? सभी मित्र, परिचित और रिश्तेदारों मे से कोई ना कॊई फ़ौज मे हैं.

    जिस दिन इन्सान फ़ौजी हो जाता है फ़िर उसके अगली पीढी तक जद्दोजहज चलती है. मरने के बाद भी फ़ौजी मरता नही है उसका कर्तव्य जो देश और परिवार के प्रति था वो कहां खत्म हो पाता है? फ़ौजी तो बस फ़ौजी है.

    आपने जिन शब्दों के साथ उनको याद किया है, उन शब्दों से अभीभूत हूं और आपकी लेखनी को प्रणाम करता हूं.

    रामराम.

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  23. kabhi itni acchi aur sambadenseel kavita saniko ke baare main nahi padhi thi, padhte padhte main bhi wahi kahi kho gya tha kabhi dango main khada tha kabhi saniko ki maa ke saath khada hoker uski maa ko nihaar raha tha ,ki kaise iski madad ker saku
    bahut accha likha hain aapne 'keep it up'

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  24. man ko jhkjhor kar rakh dene vali sundar rchna
    desh ki raksha me smrpit un sabhi sainiko ke aage nat mastak hu mai jinke khatir ham apna jeevan shan aur shanti se bitate hai .

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आप का ब्लॉग पर स्वागत है ..आप की प्रतिक्रियाओं ,प्रोत्साहन और आलोचनाओं का भी सदैव स्वागत है ।

धन्यवाद एवं शुभकामनाओं के साथ

प्रियंका सिंह मान