Wednesday, June 24, 2009

क्यों एक बलात्कारी को फांसी चढाने की व्यवस्था नहीं है ?

गत पाँच छह दिनों से एक शब्द जिसने सबसे ज्यादा विचलित किया हैं वह है "बलात्कार" । कभी सूरत में मासूम छात्राओं के साथ तो कभी इंदौर में अपने बच्चों का दाखिला कराने गई एक महिला का उसी के पति के सामने बलात्कार,कभी हिमाचल में एक विदेशी पर्यटक के साथ तो कभी दिनरात मेहनत कर अपना पेट पालने वाली एक गरीब नौकरानी के साथ ... सड़क,गाड़ी या आलिशान घर ,एक औरत की अस्मत को तार तार कर देने वाले दरिन्दे हर जगह दिखाई दिए। हद तो तब हो गई जब जुर्म की इस कालिख से निजात दिलाने वाली पुलिस भी इसी कालिख से लिपी हुई दिखाई दी और एक महिला ने दिल्ली में चार पुलिस वालों पर थाने के भीतर किए गए बलात्कार का आरोप लगाया जिसकी अब फोरेंसिक पुष्टि हो चुकी है ..और अभी जब मैं यह लिख रही हूँ तो दिल्ली में एक और महिला के साथ गैंग रेपके ख़बर टीवी पर आ रही है।

जितना दुःख इन घटनाओं का है उतना ही रोष उन लोगों पर है जिनके अनुसार ऐसी घटनाओं की जिम्मेदार महिलाएं स्वयं हैं...शाईनीआहूजा एक सेलेब्रिटी हैं इसलिए उन्हें फंसाया जा रहा है "..."जो महिला पुलिस पर आरोप लगा रही है वह एक कुख्यात सट्टेबाज़ की बीवी है इसलिए पुलिस को फंसा रही है "..."लडकियां ग़लत समय पर ग़लत कपड़े पहन कर घर से निकलती हैं "....शहर के बाहरी इलाके में यूँ जाने की क्या जरुरत थी "।

मैं जानना चाहती हूँ कि कौन औरत हैं जो यह चाहेगी की वह ऐसे घिनौने कृत्य की शिकार हो? कौन औरत होगी जो अपनी इस पीड़ा का ढोल पीटना चाहेगी ?कैसे एक पुरूष की गरिमा हर रूप में बरक़रार है,बलात्कारी भी है तो कुछ लोगों की सहानुभूति मिल जाती,कुछ दिन बाद उस ke नाम की बदनामी भुला दी जाती है॥शादी ब्याह भी यह कह कर हो जाते हैं की लड़का था, लड़कों से तो ऐसी गलतियां हो जाती हैं पर क्यों एक औरत के लिए उसी गरिमा को बचाना हर पल का संघर्ष..क्यों सब कुछ खो देने के बाद भी उसी को सवालों के जवाब देने पड़ते हैं और क्यों आजीवन उसे इस कड़वी सच्चाई से रूबरू करवाया जाता है और सारे सपने कहीं खो जाते हैं ।

क्यों एक अभिनेता की इज्ज़त है पर उसकी गरीब नौकरानी की नहीं ? क्या एक महिला इसलिए खंडित की जा सकती है ,उसके दर्द पर इसलिए सवाल लग जाते हैं क्योंकि उसका पति सट्टेबाज़ है ...एक बलात्कारी कैसे सुनसान या भीड़ में दिन या रात में कहीं भी कभी भी बेखौफ घूम सकता है पर एक शरीफ बाल बच्चेदार दंपत्ति को यह आजादी नहीं है ।

जवाब देने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वह कह देते हैं कि कार्यवाही ho रही है ,जल्द एक्शन लिया जाएगा ..पर यह जल्द आएगा कब? ऐसा तो नहीं कि यह समस्या दो दिन पहले ही उत्पन्न हुई है तो फिर कमी कहाँ है कि ऐसे कृत्यों से समाज को निजात नहीं मिल पा रहा है अलबत्ता सच्चाई यह है कि हर दिन के साथ इस में बढोतरी हो रही है । कारण है पुलिस और न्यायपालिका दोनों का ही उदासीन रवैय्या । गवाह तो अमूमन ऐसे केस में होते हीं नहीं हैं और जहाँ पैसे से हर चीज़ खरीद ली है तो सबूत क्या बड़ी बात है । यदाकदा जब कोई केस कचहरी पहुँच जाता है तो सालों तक घसीटता ही जाता है और हर सुनवाई में प्रश्नों कि जो बौझार पीड़ित महिला को झेलनी होती है उस से उसका सम्मान बार बार छलनी किया जाता है । इक्कादुका केस को छोड़ जहाँ बलात्कार के बाद कत्ल भी हुआ ऐसी बहुत कम घटनाएं हैं जहाँ पुलिस या न्यायपालिका उम्दा तफ्तीश और शीघ्र कठोर सज़ा का ऐसा उदहारण पेश कर पाई हो जो ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने में कारगर साबित हो ..भारतीय दंड संहिता के बलात्कार से जुड़ी धाराओं में संशोधन भी बहुत लंबे समय से की जा रही मांगों में से है।

बलात्कार एक औरत कि न केवल देह अपितु मन और आत्मा का भी खंडन है ..मृत्यु के बाद एक व्यक्ति पीड़ा से मुक्त हो जाता है पर बलात्कार मृत्यु से भी ज्यादा दुखदायी है क्योंकि एक पीडीत को इस दर्द के साथ आजीवन रहना पड़ता है । वह देश जहाँ औरत को देवी के रूप में पूजा जाता है उसी देश में औरत मात्र भोग की वस्तु क्यों बन गई है? क्यों उसकी इज्ज़त का मोल इतना कम है ? क्यों हर बार सड़क पर चलते हुए भेड़ियों सी निगाहें हम पर आकर टिक जाती हैं ? क्यों एक बार बस से उतर कर फिर चढ़ने का मन नहीं करता ? क्यों जिसको जैसा मौका मिलता है हमें छु कर निकलता है ..फब्तियां जो कानों में पड़ती हैं उन्हें सुन बहरा हो जाने का मन क्यों करता है ? क्यों सिर्फ़ हमें ही उपदेशों,सीखों सवालों का सामना करना पड़ता है ..क्यों एक पुरूष जैसी ही मेरी स्वतंत्रता नहीं है ?क्यों एक बलात्कारी को फांसी पर चढाने की न्याय व्यवस्था नहीं है ?

13 comments:

  1. pप्रियंकाजी फाँसी तो एक आसान मौत है बलात्कारी का तो लिन्ग काट कर उसे जख्मी छोड देना चाहिये फिर अगर मौत उस पर तरस खाये तो खाये आपका क्षोभ सही और सटीक हैपता नहीं ये समाज कब जागेगा आभार्

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  2. बलात्कारी के लिए फाँसी की सजा की व्यवस्था नहीं है। लेकिन मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि फाँसी तो जघन्य अपराधों के लिए कोई सजा नहीं ईनाम है। मैं कपिला जी के वक्तव्य से सहमत नहीं हूँ। उस तरह की सजाओं को सामाजिक नहीं कहा जा सकता वे बदले का रूप हो सकती हैं। पर क्या सजा होनी चाहिए जिस से इस अपराध से मुक्ति पाई जाए, यह विचारणीय है

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  3. बहुत बहुत सही कहा आपने.....पूर्णतः सहमत हूँ आपसे.....

    जब तक हमारे यहाँ बलात्कार के लिए कठोर दंड विधान न होंगे...केसों का त्वरित सञ्चालन और समापन नहीं होगा....लोगों के मन में डर घर नहीं कर पायेगी....

    बलात्कारी दंभ तो समझाए समझने से रहा.....इन्हें दंड के भय से ही काबू में किया जा सकता है.....इसके साथ ही आवश्यकता है स्त्रियों को शारीरिक तथा मानसिक बल से शक्तिशाली बनाने की ,ताकि वे इन विकट परिस्थितियों का सामना कर सकें...

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  4. इस जघन्य अपराध के लिए तो हर सजा कम है ।

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  5. प्रियंका जी...आपने आलेख में कई सारे प्रश्न उठाये हैं....अफ़सोस की आज समाज के पास इनका कोई उत्तर नहीं है...क्या कहूँ,,आखिर आधी दुनिया तो औरतों की ही है न...तो भी नहीं...हाँ बलात्कार की घटनाओं ने काफी क्षुब्द किया हुआ है..मैं जल्दी ही एक आलेख अपने ब्लॉग पर भी इसमें लिखने वाला हूँ...जो मेरे अदालती अनुभव के साथ और बहुत से चौकाने वाले आकडों के साथ करूँगा....शायद बहुत सी बातें स्पष्ट कर सकूँ....

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  6. sukra karo ki abhi blaatkaar ikka-dukka ho rahe hain...daro us din se jis din duniya me purush hi purush honge aur naari ka akaal hoga...us din blaatkaar ek aam ghatnaa ho jaayegaa , jaise log shaam k samay ghoomne jaate hain ..tab blaatkaar karne jaya karenge
    aur iski smoochi vyavastha purush nahin aaj ki mahilaayen hi kar rahi hain...apni kokh me palne wali kanyaon ki bhroonhatya kar k....paap kiya hai toh fal bhogna hi padega.....
    VAISE BALAATKAAR EK KALANK HAI JISE MITANE K LIYE SAKHT KANOON HONA HI CHAHIYE....PAR DHYAN RAHE SAKHT ITNAA BHI NA HO KI USKA GALAT PRAYOG KARKE NIRDOSHON KO BLACK MEL KIYA JA SAKE..........................

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  7. बहुत ही सामयिक विषय पर आपने सटीक रुप से अपनी बात रखी है. आज इस तरह की पिछली खबर चल ही रही होती है कि अगली खबर आ जाती है.
    स्वाभाविक रुप से आक्रोश उठना लाजिमी है पर इस परिपेक्ष्य मे हमें थोडा विचार करना होगा.

    आज अगर देखा जाये तो हमारे शहरों का सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो गया है. कोई किसी को जानता नही है. किसी पर कोई सामाजिक दवाब नही है, कोई सामाजिक शर्म नही है. इसके विपरीत अगर हम देखें तो गांवों का सामाजिक तानाबाना आज भी एक हद तक मौजूद है. शर्म मौजूद है. सामाजिक बहिष्कार का दर मौजूद है. और यही कारण है कि आज ये मामले गांवों मे ना के बराबर हैं जबकि इनका सारा प्रतिशत शहरों से ही बन रहा है. कारण साफ़ है.

    अब अगर हम ये चाहे तो कि शहरों मे भी गांवों जैसे सामाजिक प्रणाली पर जोर दिया जाना चाहिये तो अब ये कै कारणों से असंभव हो चुका है. तो फ़िर किया क्या जाना चाहिये?

    मेरी राय मे नागरिकों को सरकार पर यह दवाब बनाना पडेगा कि भले सरकार के पास न्यायालय बढाने के संसाधन कम हैं पर कम से कम इन अपराधों मे यह व्यवस्था की जाये कि इनकी सुनवाई फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट्स मे ही होगी. यह नितांत आवश्यक है. वर्ना कितनी ही कडी सजा का प्रावधान क्युं ना हो? त्वरित न्याय के अभाव मे कडी सजा कारगर नही रहेगी.

    और जहां तक कडी सजा का सवाल है तो कम से कम सजा इतनी कडी तो अवश्य हो कि अपराधी एक बार अपराध करने के पहले सोचे जरुर.

    आक्रोश सबी मे है और होना भी चाहिये. पर मेरी समझ से हर स्तर के सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस दिशा मे संगठित प्रयास करने चाहिये. और कोई कारण नही है कि सरकार इस दिशा मे बाध्य ना हो. जब एक जर्मन महिला को न्याय दिलाने के लिये जोधपुर मे ऐसा मामला फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट मे चल सकता है तो क्या एक पिडित भारतिय महिला के लिये ऐसी व्यवस्था नही हो सकती? महिला एक महिला ही है वो चाहे जर्मन हो या भारतीय हो.

    इस विषय पर एक सशक्त आलेख के लिये आपको धन्यवाद.

    रामराम.

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  8. taau ji se sahmat..apne vichar vistar se blog me likhungi ..abhi jara jaldi me hun..par tippni karne se khud ko rok nhi pai.

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  9. इस्लामी क़ानून में बलात्कार की सज़ा मौत है

    बहुत से लोग इसे निर्दयता कह कर इस दंड पर आश्चर्य प्रकट करते हैं| कुछ का तो कहना है कि इस्लाम एक जंगली धर्म है | मैंने उन जैसे कई व्यक्तियों से एक सवाल पूछा था - सीधा और सरल | कोई आपकी माँ या बहन के साथ बलात्कार करता है और आपको न्यायधीश बना दिया जाये और बलात्कारी को सामने लाया जाये तो उस दोषी को आप कौन सी सज़ा सुनाएँगे ? मुझे प्रत्येक से एक ही जवाब सुनने को मिला- उसे मृत्यु दंड दिया जाये | कुछ ने कहा कि उसे कष्ट दे दे कर मारना चाहिए | मेरा अगला प्रश्न था अगर कोई व्यक्ति आपकी माँ, पत्नी अथवा बहन के साथ बलात्कार करता है तो आप उसे मृत्यु दंड देना चाहते हैं लेकिन यही घटना किसी और कि माँ, पत्नी या बहन के साथ होती है तो आप कहते हैं मृत्युदंड देना जंगलीपन है| इस स्तिथि में यह दोहरा मापदंड क्यूँ?


    पश्चिमी समाज औरतों को ऊपर उठाने का झूठा दावा करता है
    औरतों की आज़ादी का पश्चिमी दावा एक ढोंग है, जिनके सहारे वो उनके शरीर का शोषण करते हैं, उनकी आत्मा को गंदा करते हैं और उनके मान सम्मान को उनसे वंचित रखते हैं | पश्चिमी समाज दावा करता है की उसने औरतों को ऊपर उठाया | इसके विपरीत उन्होंने उनको रखैल और समाज की तितलियों का स्थान दिया है, जो केवल जिस्मफरोशियों और काम इच्छुओं के हांथों का एक खिलौना है जो कला और संस्कृति के रंग बिरंगे परदे के पीछे छिपे हुए हैं |


    अमेरिका में बलात्कार की दर सबसे ज़्यादा है

    अमेरिका को दुनियाँ का सबसे उन्नत देश समझा जाता है| सन 1990 ई. की FBI रिपोर्ट से पता चलता है कि अमेरिका में उस साल 1,02555 बलात्कार की घटनाएँ दर्ज की गयी | रिपोर्ट में यह बात भी बताई गयी है कि इस तरह की कुल घटनाओं में से केवल 16 प्रतिशत ही प्रकाश में आ पाई हैं | इस प्रकार 1990 ई. की बलात्कार की घटना का सही अंदाज़ा लगाने के लिए उपरोक्त संख्या को 6.25 गुना करके जो योग सामने आता है वह है 6,40,968 | इस पूरी संख्या को 365 दिनों में बनता जाये तो प्रतिदिन के लिहाज से 1756 संख्या सामने आती है |

    एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में प्रतिदिन 1900 घटनाएँ पेश आती हैं|

    Nationl Crime Victimization Survey Bureau of Justice Statistics (U.S. of Justice) के अनुसार 1996 में 3,07000 घटनाएँ दर्ज हुईं| लेकिन सही घटनाओं की केवल 31 प्रतिशत ही घटनाएँ दर्ज हुईं | इस प्रकार 3,07000x 3,226 = 9,90,322 बलात्कार की घटनाएँ सन 1996 में हुईं| ज़रा विचार करें हर 32 सेकंड में एक बलात्कार होता है|

    ऐसा लगता है कि अमेरिकी बलात्कारी बड़े निडर है|

    FBI की 1990 की रिपोर्ट यह बताती है कि बलात्कार की घटनाओं में केवल 10 प्रतिशत बलात्कारी ही गिरफ्तार किया जा सके हैं जो कुल संख्या का 1.6 प्रतिशत है| बलात्कारियों में से 50 प्रतिशत को मुकदमें से पहले ही रिहा कर दिया गया| इसका मतलब यह हुआ कि केवल 0.8 प्रतिशत बलात्कारियों के विरुद्ध ही मुकदमा चलाया जा सका |

    दुसरे शब्दों में अगर एक व्यक्ति 125 बार बलात्कार की घटनाओं में लिप्त हो तो केवल एक बार ही उसे सज़ा दी जाने की संभावना हैं| बहुत से लोग इसे अच्छा जुआ समझेंगे | रिपोर्ट से यह भी अंदाज़ा होता है की सज़ा दिए जाने वालों में से केवल 50 प्रतिशत लोगों को एक साल से कम की सज़ा दी गयी है| हालाँकि अमेरिकी कानून के मुताबिक सात साल की सज़ा होनी चाहिए| उन लोगों के सम्बन्ध में जो पहली बार सज़ा के दोषी पाए जातें हैं, जज़ नरम पद जाते हैं|

    ज़रा विचार करें एक व्यक्ति 125 बार बलात्कार करता है लेकिन उसके विरुद्ध मुकदमा चलने का अवसर केवल एक बार ही आता है और फिर पचास प्रतिशत लोगों को जज़ की नरमी का फायेदा मिल जाता है और एक साल से भी कम मुद्दत की सज़ा किसी ऐसे बलात्कारी को मिल पाती है जिस पर यह अपराध सिद्ध हो चूका हो|


    बलात्कार की सज़ा मौत: लाल कृष्ण आडवानी

    हालाँकि मैं श्री लाल कृष्ण आडवानी जी की अन्य नीतियों और विचार से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ लेकिन मैं सहमत हूँ लाल कृष्ण आडवानी के इस विचार से कि बलात्कारियों को सज़ा-ए-मौत देनी चाहिए | उन्होंने यह मांग उठाई थी कि बलात्कारी को मृत्युदंड दिया जाना चाहिए| सम्बंधित खबर पढें...



    इस्लामी कानून निश्चित रूप से बलात्कार की दर घटाएगा
    स्वाभाविक रूप से ज्यों ही इस्लामिक कानून लागू किया जायेगा तो इसका परिणाम निश्चित रूप से सकारात्मक होगा | अगर इस्लामिक कानून संसार के किसी भी हिस्से में लागू किया जाये चाहे अमेरिका हो या यूरोप, ऑस्ट्रेलिया हो या भारत, समाज में शांति आएगी |

    सलीम खान
    संरक्षक
    स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़
    लखनऊ व पीलीभीत

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  10. ताऊ से सहमत हुआ जाता हूँ. बहुत विचाराणीय मुद्दा उठाया है.

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  11. प्रियंका जी,

    आपने तो बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा उठा दिया है.
    इस विषय पर मेरे विचार तो बिलकुल साफ़ हैं..
    बलात्कार से ज्यादा जघन्य अपराध तो कोई हो ही नहीं सकता.
    मौत की सजा भी कम है..
    यह ऐसा अपराध है की उसे किसी भी परिस्थिति में 'जायज' नहीं समझा जा सकता. ऐसा ना समझें की मैं सोचता हूँ की अपराध जायज हो सकते हैं, लेकिन अपवाद हैं... जैसे भूखे का रोटी चुराना, बेहद लाचार महिला का अपना शरीर बेचना.... ये सब परिस्थिति जनित अपराध हैं...

    १) निर्मला जी से पूर्ण रूपेण सहमत हूँ.
    २) द्विवेदी जी की इनाम वाली बात नहीं समझा!!
    ३) सलीम खान (हिन्दोस्तान की आवाज) की बातों में कुछ सच्चाई तो है (अमेरिका में बलात्कार की दर आदि), किन्तु उनकी बातों से ना जाने क्यों 'इस्लामी कानून' को जायज ठहराने की चेष्टा की बहुत बू आती है..

    और हाँ... हमेशा की तरह... एक और शशक्त लेख.
    आपका स्तर दिन दूना और रात चौगुना बढ़ रहा है...
    माँ सरस्वती आपको इसी तरह आर्शीवाद देते रहें..

    ~जयंत

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  12. बलात्कारी को फांसी की सज़ा। ज्वलंत विषय है। कारणों पर नहीं जाऊंगा, लेकिन अगर आपके कहे मुताबिक बलात्कारी के लिए फांसी की सज़ा मुकर्रर कर दी जाए तो जाने कितने ही निर्दोष फांसी पर चढ़ जाएंगे। अपने यहां बहुत से झूठे केस भी दायर किए जाते हैं। नाबालिग या बालिग लड़की अपनी मर्जी से प्रेमी के साथ जाती है, घर से गायब और बाद में पुलिस उन्हें रीकवर करके बलात्कार का केस दर्ज कर लेती है। ऐसे केसों में क्या किया जाए। क्या फांसी की सज़ा ठीक रहेगी? क्या यह जघन्य अपराध है? सड़क पर होने वाली बलात्कार की दुर्घटनाओं को जघन्य की श्रेणी में रखा जा सकता है। बलात्कार की परिभाषा को पुनर्परिभाषित करने की ज़रूरत है। तभी इसके लिए कठोर दंड विधान तय किया जाना चाहिए।

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  13. प्रियंका जी बहुत ही संवेदन शील और सही विषय उठाया आप ने काफी लम्बी व्यख्या भी की मैं भी आप के विचारो से इतफाक रखता हूँ पर मैं आप की एक बात से सहमत नहीं हूँ की की सभीबलातकार्य के मामलो मेंमें पुरुष ही जिम्मेदार होते है कही कही पर किसी लाभ बस इसके उलट भी होता है फिलहाल मैं आप की इस बात से पूर्णता सहमत हूँ की बलात्कारियों को फासी होनी चाहिए पर हमें बलात कार्य के कारणों का भी विवेचन करना चाहिए
    सादर
    प्रवीण पथिक
    ९९७१९६९०८४

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आप का ब्लॉग पर स्वागत है ..आप की प्रतिक्रियाओं ,प्रोत्साहन और आलोचनाओं का भी सदैव स्वागत है ।

धन्यवाद एवं शुभकामनाओं के साथ

प्रियंका सिंह मान